________________
यवों का व्यवहार होता था । इतना ही नहीं बल्कि प्राणधारियों के सैंकडों नाम समान रूप से वनस्पतियों को भी वाच्यार्थ रूप से प्रसिद्ध करते थे। प्राण्यंग मांस को उसके खाने वाले अनेक प्रकार के उपस्कर से तैयार करते थे। उसी प्रकार अन्न भोजी मानव भी वानस्पतिक पदार्थों से अनेक खाद्य पदार्य बनाते और उनको घृत, शक्कर, केशर, कस्तूरी आदि के संस्कारों से संस्कृत करके आकर्षक बनाते थे। इस परिस्थिति में लिखे गये शास्त्रों के अर्थ निर्णय में आजकल के विद्वानों द्वारा विपर्यास होना असम्भव नहीं है। वेदों, जैन सूत्रों और बौद्ध सूत्रों में आने वाले तत्कालीन खाद्य पदार्थों के अर्थ में आजकल के विद्वानों ने अनेक प्रकार की विकृतियां घुसेड दी हैं । इसका कारण वनस्पति तथा वनस्पत्यंगों के नामों, साथ प्राणी नामों तथा प्राण्यंग नामों की समानता ही है । अब हम इस प्रकार के प्रन्थ पाठों के उद्धरण उनके अर्थ लिख कर विषय को नहीं बढायेंगे, किन्तु प्राणी और वनस्पति को बताने वाले शब्दों को कोश के रूप में एक अनुक्रमणिका देकर इस प्रकरण को पूरा करेंगे। उन शब्दों की अनुक्रमणिका जो प्राणधारी
और वनस्पति के वाचक हैं।
नाम
प्रसिद्धार्थ बकरा . देवभोज्य
अप्रसिद्धार्थ सोनामाखी अयाचितभिक्षान
। अमृत