________________
( १२५ ) "अमर कोष" जो कि विद्यमान सर्व शब्द कोशों में प्राचीन है पञ्चमी शताब्दी की कृति है, उसमें मांस के छः नाम मिलते हैं । जो नीचे लिखे जाते हैं_ "पिशितं तरसं मासं पललं व्यमामिषम्"
(अमरकोश ) अमर कोश के टीकाकार भानुजिदीक्षित मांस के उक्त नामों की निम्न प्रकार से व्याख्या करते हैं।
"पिंशति" पिश् अवयवे (तु. प. से.) "पिशेः किञ्च" ३।३।७४ इतीतन् । पिश्यते स्म वा क्तः (२।१०२)
पिश धातु अवयवार्थक है । इससे इतन् प्रत्यय लगने से पिशित शब्द बना । अथवा पिशित शब्द पिश् धातु से क्त प्रत्यय लगने से भी बन सकता है।
तरो बलमस्त्यस्मिन् “अर्श आद्यच्" (४।१।१२६) तरस शब्द बल वाचक है इस से अच् प्रत्यय लगाने से 'तरस् शब्द बनता है ... मन्यते "मन् ज्ञाने" (दि. १०) "मने दीर्घश्च" ( उ० ३।६४ ) इति सः।
मन् धातु ज्ञानार्थक है इससे समात्य लगने और आदि स्वर के दीर्घ होने से मांस शब्द बनता है।
पलति पल्यते पा अनेन वा । “पल गतौ" ( भ्वा० ५० से.) "वृषादिभ्यश्चित्" ( उ० १।१६ ) इति कलः ।