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( १२१ ) प्रकार ऋग्वेद के द्वितीय अष्टक के तृतीय अध्याय के सप्तम, अष्टम, नवम और दशमसूक्त हमारी राय में पिछले ऋषियों का प्रक्षेप है। क्योंकि ऋग्वेद का पहला मण्डल ही भिन्न २ कालीन अनेक ऋषियों द्वारा व्यवस्थित किया गया है। इस दशा में ऋग्वेद के प्रक्षेप अर्वाचीन कालीन होने विशेष सम्भव हैं। ... ऋग्वेद के जिन चार सूक्तों का ऊपर निर्देश किया गया है । उनमें घोड़े के कच्चे तथा पक्के मांस की चर्चा है । क्या आश्चर्य है कि मध्य एशिया की तरफ से भारत के पश्चिम प्रदेश से आये हुए और पंजाब के लगभग फैले हुए आर्य कहलाने वाले मानवों की यह कृति हो और बाद में ऋग्वेद में प्रक्षिप्त हो गये हों ? क्योंकि वास्तव में ऋग्वेद के वक्ता आर्य विद्वान् गंगा सिन्धु के मध्य भाग में रहने वाले थे, और उनके प्राचीन ऋग्वेद में मांस का नाम तक नहीं था। सिन्धु के पश्चिमवर्ती आर्यों के पूर्व में आने के बाद वेदों में विकृति का प्रारम्भ हुआ और उसके बाद में सकारण अथवा स्वाभाविक दुर्भाग्य योग से वेद के निघण्टु का लोप हो जाने के कारण प्राचीन वेदों का अर्थ करने में कठिनाई ही नहीं हुई बल्कि अर्थ का अनर्थ तक हो गया। - ऋग्वेद में मांस और क्रविष् ये दो शब्द मिलते हैं दूसरा मांस का कोई पर्याय नाम नहीं मिलता। ___ शुक्लयजुर्वेद की वाजसनेवि माध्यन्दिन-संहिता में अश्वमेधादि बड़े यज्ञों में अनेक प्रकार के पशुओं के नियोजन का वर्णन