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________________ ( . ६६ ) कान्त मेघमत्यार्जन्त ) ( स शरभोऽभवत् ) त एव उत्क्रान्तमेधाः श्रमेध्याः पशवस्तस्मादेतेषां नाश्नीयात्, तस्थामन्वगच्छन्सोऽ नुगतो त्रीहिरभवत्, (तद् यत् पशौ पुरोडाशमनुनिर्पयन्ति, स मेघेन नः पशुमेष्टमसत्, केबलेन नः पशुनेष्टमसदिति स मेघेन हास्य पशुनेष्ट ं भवति, केवलेन हाऽस्य पशुनेष्ट ं भवति य एनं वेद ॥ ८ ॥ 1 अर्थः- देवताओं ने पुरुष को पशु मान कर उससे यज्ञ किया • तब पुरुष में से मेघ निकल गया, और उसने घोड़े में प्रवेश किया, तब घोड़ा मेध्य बना, फिर उस उत्क्रान्त मेधको अति पीडित किया तब वह किं पुरूष हो गया, उन्होंने अश्व का आलम्भन किया, आलब्ध अश्व में से मेघ निकल गया, वह बैल में प्रविष्ट हुआ, तब से गौ मेध्य हो गया, उसका बालम्भ किया, आलम्भ करने पर गौ में से मेधतत्त्व निकल गया, उसने भेड़ में प्रवेश किया, तब भेड़ मेध्य हुआ और उसका बलि किया, फिर उसने अज में प्रवेश किया और अज मेध्य हुआ, फिर अजका बलि किया तब वह अज से निकलकर पृथ्वी में प्रविष्ट हुआ, पृथ्वी मेध्य हुई, इनमें जो उत्क्रान्त मेध पशु हैं वे अमेध्य हैं । अतः उनको न खाना चाहिए, पृथ्वी में घुसा हुआ मेध ब्रीहि के रूप में प्रकट हुआ । ऐतरेय ब्राह्मण के उपर्युक्त वर्णन से यह ध्वनित होता है, देवताओं ने पुरूष, घोड़ा, बैल, भेड़, बकरे आदि का बलिदान
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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