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... (६४ ) सुधासुना ततः र्या-मधुपर्क मुखाम्बुजे । प्राज्यं दधि-मधून्मिश्र-मेतदुक्तं मनीषिणा ॥६॥
अर्थः-उसके बाद जल के साथ मुख कमल में मधुपर्क रखे, घृत, दधि, मधु, यह इन पदार्थों के समुदाय को विद्वानों ने मधुपर्क कहा है।
मधुपर्क का उल्लेख करने वाले कतिपय शास्त्रीय उद्धरण ऊपर दिये हैं, उनसे ज्ञात होगा कि प्राचीन काल में मधुपर्क किस प्रकार होता था । इन शास्त्रों में बौधायन गृह्य सूत्र सबसे प्राचीन है, इसके निर्माण समय में मांस का प्रचार सबसे अधिक था, इस लिये उन्हें यह लिखना पड़ा कि “न त्वेवा 5 मांसो ऽ यः" और मांस की अप्राप्ति में पिष्ट को कल्पित मांस बनाकर मधुपर्क करने की बात कहनी पड़ी।
गोमिल गृह्य सूत्रादि में भी बौधायन की तरह गोमोचन की विधि लिखी है । परन्तु उन में गौ के अभाव में भेड़ बकरा आदि के मांस से मधुपर्क करने का सूचन नहीं किया । इससे विदित होता है कि इन सूत्रों के बनने के समय तक मांसभक्षण का प्रचार बहुत कम हो गया था । और गौबन्धन तथा उसका उत्सर्ग एक प्रकार का रिवाज मात्र रह गया था।
- यही कारण है कि पिछले प्रन्थकारों के नाम पर अमुक विधानों को निषिद्ध करना पड़ा। वृहन्नारदीपकार ने इस विषय में लिखा है