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समय के वाद में बनने वाले यजुर्वेद, अथर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण, आदि वैदिक ग्रन्थों में याज्ञिक हिंसा प्रविष्ट हो मई। ......
यजुर्वेद और अथर्ववेद का संक्षिप्त परिचय भारतीय सभ्यता के इतिहास लेखक कहते हैं-... । “यजुर्वेद के संग्रह करने वालों का कुछ पता नहीं । श्याम यजुर्वेद तित्तिरि के नाम से तैत्तरीय संहिता कहलाता है, और कदाचित् इसी तित्तिरि ने इसे इसके आधुनिक रूप में संगृहीत या प्रकाशित किया था। इस वेद की आत्रेय वृत्ति की अनुक्रमणी में यह लिखा है कि यह वेद वैशम्पायन से यास्क पौंगी को प्राप्त हुआ, फिर यास्क से तित्तिरि को, तित्तिरि से उक्थ को और उक्थ से
आत्रेय को प्राप्त हुआ । इससे प्रकट है कि यजुर्वेद की जो इस समय सब से पुरानी प्रति मिलती है वह आदि प्रति नहीं है। - श्वेतयजुर्वेद के विषय में हमें इस से भी अधिक पता लगता है। यह वेद अपने संग्रह करने वाले या प्रकाशित करने वाले याज्ञवल्क्य वाजसनेय के नाम से वाजसनेयी संहिता कहलाता है। याज्ञवल्क्य विदेह के राजा जनक की सभा में प्रधान पुरोहित थे, खौर यह नया वेद कदाचित् इसी विद्वान् राजा की सभा से प्रकाशित हुआ, श्याम और श्वेत यजुर्वेदों के विषयों के क्रम में सब से बड़ा भेद यह है कि पहिले में तो याज्ञिक मन्त्रों के आगे उनका व्याख्यान और उनके सम्बन्धी यज्ञ कर्म का वर्णन दिया है। परन्तु दूसरी संहिता में केवल मन्त्र ही दिये गये हैं, उनको व्याख्यान तथा यज्ञ कर्म का वर्णन एक अलग ब्रह्ममा में दिया है।