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________________ लिए अनुकूल नहीं थी, और वे संख्या में भी अत्यल्प होने के कारण आर्यों से हिलमिल कर रहते थे। प्राचीनकाल में भारतवर्ष का भ्रमण करने वाले विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरणों से भी यही पाया जाता है कि उत्तर भारत सदा से सभ्य आर्यों से बसा हुआ था। प्रीकयात्री मेगास्थनीज जो चन्द्रगुप्त मौर्य की राज-सभा में राजदूत के रूप में वर्षों तक रहा था, और उत्तरीय भारत के अनेक देशों का भ्रमण किया था, उसके यात्रा-बिवरण से भी उत्तर भारत में आर्यों की प्रधानता और वहां बनस्पत्याहार की मुख्यता थी, उसके कहने के अनुसार वहां पहाडी अनार्यों को छोडकर नागरिक लोग खास प्रसङ्गों के बिना मांस-मदिरा का उपयोग नहीं करते थे। बौद्धयात्री फाहियान जो ईसा की पञ्चमी शताब्दी के लगभग भारत में आया था वह उत्तर भारत के सीकाश्य देश के विषय में लिखता है 'देश भर में कोई मांसाहारी नहीं है । नहीं कोई मादक द्रव्यों का उपयोग करता है । वे प्याज और लहसुन नहीं खाते । केबल चाण्डाल लोग ही इस नियम का उल्लंघन करते हैं । वे सब वस्ती के बाहर रहते हैं । और अस्पर्श कहाते है। इनको कोई छूता भी नहीं, नगर में प्रवेश करते समय लकड़ी से कुछ संकेत और आवाज करते हैं । इसको सुनकर नागरिक इट जाते हैं। इस देश
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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