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अशुद्धियां अधिक प्रमाण में रह गई हैं, पाठक गण अन्त में दिए गये शुद्धि-पत्रक के अनुसार अशुद्धियों को सुधार कर ग्रन्थ को पढ़ें।
अन्त में हम "साहित्य एकेडेमी" के कर्णधार श्री नेहरूजी तथा अन्य अधिकारियों को आग्रह पूर्वक अनुरोध करते हैं कि "भगवान् बुद्ध" जैसी धार्मिक सम्प्रदायों को उत्तेजित करने वाली पुस्तकों को प्रकाशित करने के पहले स्थित प्रज्ञता से विचार करें, ऐसी पुस्तकों के प्रचार द्वारा भारत में मांस मत्स्यों के भोजन का प्रचार करना ही एक उद्देश्य प्रतीत होता है, परन्तु ऐसे धर्म घातक अधार्मिक प्रचारों से देश की कोई समस्या हल नहीं हो सकेगी। इतना ही नहीं किन्तु अन्यान्य सम्प्रदायों में धार्मिक असन्तोष फैलने का परिणाम देश में अशान्ति फेलाने वाला होगा, बौद्ध धर्म का भारत से निर्वासित होने का मूल कारण बौद्धों का मांसाहार ही हुआ है, तब आप लोग मांसाहार के प्रचार से भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करना चाहते हैं, यह कैसी भूल है, लाखों जैनों तथा वैदिक धर्मियों ने इस पुस्तक के विरोध में आवाज पहुंचाई है, फिर भी आपके कानों की जूं तक नहीं रेंगती । क्या आप यह चाहते हैं कि इस पुस्तक के सम्बन्ध में तोड़ फोड़ करने वाला बवण्डर खड़ा होने के बाद ही इसके सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय किया जायगा, मैं समझता हूँ ऐसी तूफानी क्रान्ति के लिए हमारा धार्मिक समाज कभी कदम नहीं उठायगा, झं यदि आप दश
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