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________________ आचार्य पदोनी भावना माटे नमस्कारपदोनो अर्थ ॥ ( ७१ ) ३३ बाह्य अभ्यन्तर तप कर्म खपाववाना मार्ग छे ते निर्जरा भावना० गुण. ३४ चौदराज लोकनुं षद्रव्यादिनुं स्वरूप चिन्तववा रूप लोकस्वभाव भावना० गुण. ३५ सर्व वस्तु सुलभ वे पण केवली प्रणीत धर्मनी श्रद्धारूप बोधि दुर्लभ वे ते बोधि भावना० गुण० ३६ धर्मना कहेनार श्री तीर्थंकर प्रभुज बे ते धर्मकथक दुर्लभत्वभावना० गुण. आ ३६ गुणे विभूषित श्री आचार्य भगवंतने म्हारो नमस्कार थाओ श्री आचार्य पदाराधननो काउस्सग्ग पूर्वनी माफक जाणवो, मात्र " छत्तीसगुणविभूसिय सिरिआयरियपयाराहणत्थं काउस्सग्गं करेमि " (षट्त्रिंशद्गुणविभूषितश्रीआचार्य पदाराधनार्थ) आ प्रमाणे बोलवु ३६ लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो जापपद ओ ही नमो यरियाणं" जप आ दिवसे श्री आचार्य पदमां जेम विशेष लीनता थाय तेम आचार्य गुणोनुं ध्यान स्मरण विशेष कर.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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