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________________ (५८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ अनन्तं केवलज्ञानं, ज्ञानावरणसंक्षयात् । अनन्तं दर्शनं चापि, दर्शनावरणक्षयात ॥१॥ क्षायिके शुद्धसम्यक्त्व-चारित्रे मोहनिग्रहात् । अनन्ते सुखवीयें च, वेद्यविनक्षयात्क्रमात् ॥२॥ आयुषः क्षीणभावत्वात्, सिद्धानामक्षया स्थितिः। नामगोत्रक्षयादेवाऽ-मूर्तानन्तावगाहना ॥३॥ ___ आ प्राचीन श्लोकोथी सिद्ध परमात्माना आठ गुणो बताव्या छे, जो के उपरोक्त श्लोकोमा मोहनीय क्षयथी सम्यक्त्व १ अने क्षायिकचारित्र २ ए बे गुणो बताव्या छे, अने नाम तथा गोत्र ए बेउ कर्मनाक्षयथी 'अमूर्त अनन्त अवगाहना' नामनो एक गुण बताव्यो छे. संख्यामा गुण ८ छे, परन्तु बीजा अनेक स्थलोए मोहक्षयथी उत्पन्न थयेल बेउगुणने एकजलीधा छे,अने नाम कर्मक्षयथी अरूपी गुण अने गोत्रक्षयथी अगुरुलघुस्वभाव गुण एम जुदा जुदा बे गणाव्या छे, अने तेज प्रमाणे अहीं पण खमासमण देवामां ते मुजब गुणो गणाव्या छे.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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