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________________ (५२) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ तीरियं रकिहियं आराहियं जं च न आराहियं तस्स "मिच्छामि दुक्कडं " आप्रमाणे पाठ बोली पच्चक्खाण पारवं. एक नवकार गणवो. . आयंबिलना पच्चक्खाणनी साथे काल संबंधी पोरिसी, साम्पोरिसी, पुरिम, अव विगेरे पोतानी शक्ति प्रमाणे-पच्चक्खाण छे, एकवार भोजननुं एकासण पच्चक्खाण छे; प्रासुक पाणीनुं पाणस्सनुं पच्चक्खाण छे, ते साथे मुट्ठिसहियं, पोते धारेलु गंठसहियादि पच्चक्खाण छे. १ 'तीरियं' काल पूर्ण थया पछी तेनी शुद्धि माटे थोडा अधिक काल सुधी सबुर राखीने पारवाथी पार उतायु. २ "किटियं' वापरती वखते आज म्हारुं अमुक पच्चख्खाण हतुं ते में संपूर्ण आराध्यु, हवे हुं वापरू छु तेम पच्चक्खाणनी स्तवना (स्मरण) करवायी वखाण्यु. ३ 'आराहियं ' आ म्हारं पच्चक्खाण उपर प्रकारनी सर्व शुद्धि सहित श्री जिनाज्ञा पाळवा पूर्वक फलाशंसा रहितपणे केवळ कर्मक्षयनी अभिलाषाथी कर्यु छे.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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