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________________ AAAAAAA AAAAAAAAAAAAM (४०) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ दुवालसगुणविभूसियसिरिअरिहंतपयाराहणत्थं (द्वादशगुणविभूषितश्रीअर्हत्पदाराधनार्थ) काउस्सग्गं करेमिपंचेन्द्रिय सुधीना जीवोनी विराधनाना मिच्छामिदुक्कडं आवे छे जेनी संख्या १८२४१२० थायछे, 'जे मे जीवा विराहिया एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिया पंचिंदिया' जे मे जीवो विराध्या एकेन्द्रिय थी यावत् पंचेन्द्रिय सुधी,अहीं एकेन्द्रियथी पंचेन्द्रिय सुधीना ५६३ जीवभेद लेवा, [एकेन्द्रिय २२. पृथ्वीकाय (४) सूक्ष्म अपर्याप्त, सूक्ष्म पर्याप्त, बादर अप०,बा०प०. एवं अप्काय (४).तेउकाय(४). वायुकाय (४). साधारण वनस्पतिकाय (४). आगळना तमाम जीवो बादर ज होय छे जेथी प्रत्येकवन० अप० (१) प्रत्यक वन० ५० (२).दीन्द्रिय २.अप० द्वी०.१. प०द्वी २.त्रीन्द्रिय २.चतुरि०२. पंचेन्द्रियतियच २०. जलचर (४) सम्म० अप०, सं०प०, गर्भज अप०, गर्भज पर्याप्ता. चतुष्पद (४). उरःपरिसर्प (४). भुजपरि० ( ४ ). खेचर (४). नारक १४. सात अप०, सात प०. मनुष्य ३०३ पांच भरत, पांच औरवत, पांच महाविदेह, ए १५ कर्मभूमि, पांच हिमवंत, पांच हिरण्यवंत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक, पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु, ए ३० अकर्मभूमि, छप्पन अंतीप, कुल १०१. सम्मू० मनु० अपर्याप्ताज होय माटे ते १०१, अने गर्भज अप०१०१ पर्याप्ता १०१(३०३).देवता १९८,दश भुवनपति, पंदर परमाधामी, ८ व्यंतर, ८ वाणव्यंतर, १० तिर्यग् जुंभक, ५.चरज्योतिष, ५ स्थिर ज्यो०, ३ किल्बिषिक, बार देवलोक, ९
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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