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________________ श्रीपाळ महाराजाने आपेल उपदेश ॥ (३६१ ) सकल विधान जे याचरे, ते दीसे विरला कोयरे । ते दीसे विरला कोयरे ॥ संवे० ॥ ३३ ॥ करण प्रीति आदर घणो, जिज्ञासा जाणनो संगरे । शुभ आगम निर्विघ्नता, ए शुद्ध क्रियानां लिंगरे॥ ए शुद्ध क्रियानां लिंगरे ॥ संवे० ॥ ३४ ॥ द्रव्यलिंग अनंतां धर्या, करी किरिया फळ नवि लद्धरे शुद्धक्रिया तो संपजे, पुद्गल आवर्तने अद्धरे ॥ पुद्गल आवर्त्तने अद्धरे॥ संवे०॥ ३५॥ मारग अनुगति भाव जे, अपुनर्बधता लद्धरे ॥ किरिया नवि उपसंपजे, पुद्गळ आवर्त ने अद्धरे ॥ पुद्गल आवर्तने अद्धरे ॥ संवे०॥३६ ॥ अरिहंत सिद्ध तथा भला, आचारिज ने उवज्झायरे साधु नाण देसण चरित्त, तव नवपद मुगति उपायरे। तव नवपद मुगति उपायरे ॥ संवे० ॥३७॥ ए नवपद ध्यातां थकां, प्रगटे निज आतमरूपरे । आतम दरिसण जेणे कयु, तेणे मूंद्यो भवभयकूपरे ॥ तेणे द्यो भवभयकूपरे ॥ संवे०॥३८॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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