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________________ (३३०) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ श्वासी। गलित कोढ गयो तेणे नाशी, सुविधिसु सिद्धचक्र उपासी, थया स्वर्गना वासी । आशो चैत्र तणी पौर्णमासी, प्रेम पूजो भक्ति विकाशी, आदि पुरुष अविनाशी ॥१॥ केशर चंदन मृगमद घोळी, हरखसुं भरी हेम कचोली, शुद्ध जळे अंघोळी। नव आंबिलनी कीजे ओळी, आसो सुदि सातमथी खोळी, पूजो श्रीजिनटोळी । चउगतिमाहे आपदा चोळी. दुर्गतिना दुःख दूर ढोळी, कर्म निकाचित रोळी। कर्म कषाय तणा मद रोळी, जिम शिव रमणीभमर भोळी, पाम्यासुखनी ओळी, ॥२॥ आसो शुदि सातमश्यु विचारी, चैत्री पण चित्तसु निरधारी, नव आंबिलनी सारी । ओळी कीजे आलसवारी, प्रतिक्रमण बे कीजे धारी, सिद्धचक्र पूजो सुखकारी । श्रीजिनभाषित पर उपकारी, नवपद जाप जपो नरनारी, जिम लहो मोक्षनी बारी। नवपद महिमा अति मनोहारी, जिन आगम भाखे चमत्कारी, जाउं तेहनी बलिहारी ॥३॥ श्याम भमर सम वीणा काली, अति सोहे सुंदर सुकुमाळी, जाणे
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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