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________________ (३१८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ कलश नवपद ध्यान प्रभावथी;शिवशुचि पदपावे। भरमति मिरघन संहरे; समता रस आवे ॥ नव० ॥१॥ करम कलंक पंके करी;भ्रम चेतन पावे । चिहुं दिशि भ्रमत फीरे सदा; मृगनिंद न पावे ॥ नव०॥२॥ सद्गुरु संगपणो वरी3B जडपद मीट जावे। उपल अनल प्रभावथी कलधौत कहावे ॥ नव० ॥३॥ शुद्ध संवेगपणु वरी; ममता तजी ध्यावे । भवोदधि भ्रमणपणु मटे; चेतन जिन थावे ॥ नव० ॥४॥ शुद्ध स्वरूपपणे करी; निजकर्म खपावे । कहे जिनपद्म मुनी. श्वरु; ज्योतिरूप कहावे ॥ नव० ॥५॥ ॥ इति श्री नवपद स्तवन संपूर्णम् ॥ नवपद स्तवन. - अहो भविप्राणी रे सेवो। सिद्धचक्र ध्यान समो नहीं मेवो ॥ अहो० ॥ जे कोइ सिद्धचक्रने आराधे, तेहनो जगमांहि जश वाधे ॥ अहो० ॥ १ ॥ पहेले पदे रे अरिहंत । बीजे सिद्ध बुद्ध ध्यान महंत ॥ त्रीजे पदे रे सूरीश । चोथे उवज्झाय ने पांचमे मुनीश ॥ अ० ॥२॥ छठे दरसण रे कीजे । सातमे ज्ञानथी शिवसुख लीजे । आठमे चारित्र पालो । नवमे तपथी मुक्ति भालो ॥ अ० ॥३॥ आंबिल ओलो रे कीजे । नोकारवाली वीश ग
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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