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॥ स्तवनो॥
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॥ नवपदजीनुं स्तवन ॥ ॥ नव पद ध्यान सदा जयकारी॥ ए आंकणी॥ अरिहंत सिद्ध आचारज पाठक, साधु देखो गुणरूप उदारी ॥ नव पद० ॥१॥ दरशन ज्ञान चारित्र हे उत्तम, तप दोय भेदे हृदय विचारी ॥ नव० ॥२॥ मंत्र जडी ओर तंत्र घणेरा,उन सबकुं हम दूर विसारी ॥ नव० ॥३॥ बहोत जीव भवजलसे तारे,गुण गावत हे बहु नर नारी ॥ नव०॥४॥श्री जिनभक्त मोहन मुनि वंदन, दिन दिन चडते हरख अपारी॥नव०॥५॥
॥ श्री नवपदजी, स्तवन ॥ ॥नव पद धरजो ध्यान, भवि तुमे नव पद धरजो ध्यान ॥ ए नवपदनुं ध्यान करतां, पामे जीव विसराम ॥ भवि० ॥१॥ अरिहंत सिद्ध आचारज पाठक साधु सकल गुणवान ॥ भवि० ॥ २ ॥ दर्शन ज्ञान चारित्र ए उत्तम, तप तपो करी बहुमान ॥ भवि० ॥३॥ आसो चैत्रनी सुद सातमथी, पूनम लगे परमान ॥ भवि० ॥ ४॥ एम एकाशी आंबिल कीजे,