________________
॥ स्तवनो॥
(२९३) थारो शीलने पालो, जिनशासन, रहस्य ॥५॥ पूजोरे इम ओली नवकीजे, विधिश्युं चढते उच्चाह्य, द्रव्य भाव बेहुस्युं साढा चार वरस माह्य ॥ ६ ॥ पूजोरे ॥ तप पूरे ऊजमणुं कीजे, तुरत यथाशक्ति दर्शन जैन, जिम षटमां दीपे देखालीबिगते ॥७॥पूजोरे० लघुकर्माने क्रिया फल दिये सफलो उवएस, सेर होय तिहां कूवो खणीये ते विण संक्लेश ॥ ८॥ पूजोरे ॥ सफल हवो श्रीपालने. सवि जस अव्य भाव शुध्ध, इम जो विधिस्युं आराधे, फल पामे बुद्ध ॥ ९॥ पूजोरे ॥ एहथी राजऋद्धि बह रमणी,सवि गुणनी वृद्धि, न्याय सागर कहे एहने, सेवो जो व्हाली सिद्धि ॥ १० ॥ प्रजोरे ॥ इति श्रीसिद्धचक्र स्तवन संपूर्णम
श्री सिद्धचक्र स्तवन ॥ श्री सिद्धचक्र सेवा करो, जस गाजे छे सिध्ध साधन पुष्ट उपाय, त्रिभुवन राजे छे कारण शिव साधन तणां, जस गाजे छे संख्यातीत कहेवाय
, ॥१॥
के स्तवन संपूर्णम् ॥