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________________ (२९०) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ काय. देहडी तेहनी थाय, आछे०, श्री सिद्धचक्र महिमा कह्यो जी. ॥३॥ सांभळी सहु नर नार, आराध्यो नवकार, आछे०, हेज धरी हैडे घणुंजी; चैत्र मास वळी एह, नवपद शुं धरो नेह, आछे०, पूज्यो दे शिवसुख घj जी.॥४॥ एणी परे गौतम स्वाम, नव निधि जेहने नाम, आछे०, नवपद् महिमा वखाणीएजी; उत्तमसागर शिष्य, प्रणमे ते निशदीश, आछे०, नवपद् महिमा जाणीए जी. ॥५॥ श्री नवपदजीनुं स्तवन. (कीसके चेले कीसके पुत. ए देशी.) सेवोरे भवि भावे नवकार, जप श्री गौतम गणधार, भवि सांभळो, हारे संपद थाय भ०हारे संकट जाय भ०, आसो ने चैत्रे हरख अपार, गणणुं कीजे तेर हजार. भ. ॥१॥ चार वर्ष ने वळी षट् मास, ध्यानधरो भवी धरी विश्वास, भ०; ध्यायो रे मयणासुंदरी श्रीपाळ, तेहनो रोग गयो तत्काळ. भ० ॥२॥ अष्ट कमल दल पूजा रसाल, करी न्हवण छांट्युं तत्काल, भ०; सातसो महीपति तेहने रे ध्यान, देहडी पाम्या कंचनवान. भ० ॥३॥ महिमा कहेतां नावे पार, समरो तिण कारण नवकार, भ०; इह भव परभव दीए सुखवास, पामे लच्छी लीलविलास.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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