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________________ (२८६) नवपद विधि विगेरे संग्रह । जपतां बहु फळलीध लाल रे; गुण जसवंत जिनेंद्रनो, ज्ञान'विनोद प्रसिद्ध लाल रे, श्री सि० ॥५॥ श्री नवपदनुं स्तवन. नवपद ध्यान सदा जयकारी. ए आंकणी. अरिहंत सिद्ध आचारज पाठक, साधु देखो गुणरूप उदारी, नव० ॥१॥ दर्शन ज्ञान चारित्र हे उत्तम, तप दोय भेदे हृदय विचारी, नव०॥२॥ मंत्र जडी ओर तंत्र घणेरा, उन सबकुं हम दूर विसारी, नव० ॥३॥ बहोत जीव भवजलसें तारे, गुण गावत हे बहु नरनारी, नवर ॥४॥ श्री जिनभक्त मोहन मुनिवंदन, दिन दिन चढते हर्ष अपारी, नव० ॥५॥ श्री सिद्धचक्रनुं स्तवन. (सांभळ रे तुं सजनी मारी, रजनी कयां रमी आवी जी रे. ए देशी.) श्री वीर प्रभु भविजनने एम कहे, भावदया दिल आणीजी रे. सुरतरु सम सिद्धचक्र आराधो, वरवा शिववधु राणी, सुभविया सुणजोजी. ॥१॥ शिव कार्यमुख्य कारण नवपद छे, गुणी गुण पण चारजी रे; अरिहंत सिद्ध सूरि उवझाये, साधु वर दर्शनधार, सुभवि० ॥२॥ ज्ञान चारित्र तप ए नव पद्नु, आराधन एणीपरे कीजेजी
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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