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________________ स्तवनो॥ (२७५) वसु, चैत्यवंन्दन कीजे । चैत्यप्रवाडी वीतराग, पूजा फल लीजे ॥ स्वामिवत्सल कीजीये ये, नवओली वृत्तांत । ऊजमणुं सिद्धचक्रतुं, मोहन महिमावंत ॥३॥इति॥ अथ स्तवनो. . ॥श्री अरिहंतपद स्तवनम् ॥ ॥त्रीजे भव विधिसहितथी, वीश स्थानक तप करीने रे॥गोत्र तीर्थकर बांधीयुं, समकित शुद्ध मन धरीने रे॥ ॥१॥ अरिहंतपद नित वंदीए, करम काठन जिम छंडीए रे॥ ए आंकणी ॥ जनम कल्याणकने दिने, नारकी सुखीया थावे रे॥ मति श्रुत अवधि विराजता, जसु ओपम कोइ. नावे रे ॥१०॥ २॥ दीक्षा लीधी शुभ मने, मनःपर्यव आदरीयु रे ॥ तप करी कर्म खपाइने, ततखिण केवल वरीयुं रे॥०॥ ३॥ चउतीश अतिशय शोभता, वाणी गुण पेंतीशो रे ॥ अठदश दोष रहित थइ, पूरे संघ जगीशो रे अ०॥४॥ तन मन वयण लगाइने, अरिहंतपद आराधे रे ॥ ते नर निश्चयथी सही, अरिहंतपदवी साधे रे॥ अरिहंतपद नित वंदीए ॥५॥इति॥ ॥श्री सिद्धपद स्तवनम् ॥ ॥ सकल करमनो क्षय करी, सिद्ध अवस्था पाइ रे ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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