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________________ (२४८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ।। सात नये जे आदरे, सम्यग्ज्ञान ते जाणेजी ॥१९॥ [उलालो] निद्धारसेती गुणी गुणनो, करे जे बहुमान ए॥ तसु करण ईहा तत्व रमणे, थाय निर्मळ ध्यान ए॥ एम शुद्धसत्ता भळ्यो चेतन, सकल सिद्धि अनुसरे॥ अक्षय अनंत महंत चिद्घन, परम आनदता वरे॥२०॥ ॥ अथ कळश ॥ इय सयल सुखकर गुणपुरंदर, सिद्धचक्र पदावलि॥ संवि लद्धि विद्या सिनिंदर भविक पूजो मनरुली ॥ उवझायवर श्री राजसागर, ज्ञानधन सुराजता ॥ गुरु दीपचंद सुचरण सेवक, देवचंद सुशोभता ॥ २१॥ . ॥ इतिश्री देवचन्द्रजीकृत स्तवना समाप्ता ॥ ॥ पूजा ढाळ ॥ जाणता तिहुं ज्ञाने संयुत, ते भव मुक्ति जिणंद ॥ जेह आदरे कर्म खपेवा, ते तप शिवतरु कंद रे॥भविका ॥ सि०॥४१॥ कर्म निकाचित पण क्षय जाये क्षमा सहित जे करतां॥ ते तप नमिये जेह दीपावे,
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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