SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ ॥ मालिनीवृत्तम् ॥ इयनवपयसिद्धं, लद्धिविज्जासमिद्धं ॥ पयडियसरवग्गं, हीँतिरेहासमग्गं ॥ दिसिवाइ सुरसारं, खोणिपीढावयारं ॥ तिजय विजयचकं, सिद्धचक्कं नमामि ॥६॥ (२४६ ) wwwww त्रिकालिकपणे कर्म कषाय टाळे, निकाचितपणे बांधियां तेह बाळे ॥ कां तेह तप बाह्य अंतर दुभेदे, क्षमायुक्त निर्हेतु दुर्ध्यान छेदे ॥२०॥ होये जास महिमाथकी लब्धि सिद्धि, अवांछकपणे कर्म आवरणशुद्धि ॥ तपो तेह तप जे महानंद हेते, होय सिद्धि सीमंतिनी जिम संकेते ॥ २१ ॥ इम नवपद ध्यानने जेह ध्यावे, २ कर्मकाष्ठ प्रतिजालवा परतक्ष अग्नि समान । तप पद पूजो सदा, निर्मल धरीये ध्यान ॥ ( बाकी सरखं ) निलोभी इच्छातणो; रोध होय अविकार; कर्मतपावन तप कह्यो; तेहना धार प्रकार ॥ १ ॥ जेह कषायने शोषवे प्रतिसमय टाळे पाप ते तप करीये निर्मळो बीजो ननु संताप ॥ २ ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy