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(२४२) नवपद विधि बिगेरे संग्रह । भविका ॥ सि० ॥३४॥ लोक ऊर्ध्व अधो तिर्यग्ज्योतिष्, वैमानिक ने सिद्ध ॥ लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, तेह ज्ञान मुज शुद्ध रे ॥ भविका ॥ सिद्ध
चक्र०॥३५॥
॥ ढाळ ॥ ज्ञानावरणी जे कर्म छे, क्षयउपशम तस थाय रे ॥ तो हुए एहिज आतमा,ज्ञान अबोधता जायरे ॥८॥वीर०॥
॥ इति सप्तम सम्यग्ज्ञानपदपूजा समाप्ता ॥७॥
॥अथ अष्टम श्री चारित्रपदपूजा प्रारंभ ॥
॥ काव्यं ॥ आराहिअखंडिअसक्किअस्स॥
नमो नमो संजमवीरिअस्स ॥ बीजी प्रतनो वधारो१ आरा० सम्भावणासंगविवडियस्स निव्वाणदाणाइसमु
ज्जयस्स। (बाकी सरखं)