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________________ २४०) नवपद विधि विगेरे संग्रह। ॥ ढाळ ॥ उलालानी देशी ॥ भव्य नमो गुणज्ञानने, स्वपरप्रकाशक भावेजी छ? अट्ठम दश दोयलसे, करे अज्ञानी शोधि; बहु गुणे जोय एहथी, ज्ञाने युक्ति विशोधि ॥ ३ ॥ अंतर तत्त्व विचारणा, सम्यग ज्ञान संयोग; दुर्जय कर्म तणो सही, तत्क्षण होय वियोग ॥ ४ ॥ जिनवर उक्तक्रिया विषे, ज्ञान तणो उपयोग महानिर्जरा कारणे, कहे विशुद्ध वियोग ॥५॥ अंग अनंग भेदे करी, श्रुतना दोय प्रकार; अंग आचारांगादि तिहां, अनंग वळी अवधार ॥ ६॥ आवश्यक उत्तराध्ययन, कल्पाध्ययनादीनु; उपांग कहे सहु ग्रहे, सूत्रार्थ तल्लीन ॥७॥ ज्ञान अपूर्व ग्रह्या थकां, कर्मनिजरा होय; तत्त्वातत्त्व प्रबोधथी, समकित निर्मल जोय ॥८॥ ज्ञानबंध कारण विना, ज्ञान महातमसूर; भव समुद्र तारण भणी, ज्ञाननाव भरपूर ॥९॥ सूक्ष्म बादर लोकमां, जाणे सघळा भाव, ज्ञान शिखवो त भणी, जे होवे चतुरा जीव ॥ १० ॥ ज्ञान परम गुण जीवनो, ज्ञान भवण प्रद्योत; मिथ्यामति तम भेदवा, ज्ञान महा उद्योत ॥ ११॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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