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________________ श्री नवपदजीनी पूजा॥ (२२३) करे सेवना सूरिवायग गणिनी, करुं वर्णना तेहनी शी मुणिनी ॥ समेता सदा पंचसमिति त्रिगुप्ता, २ मोक्षमारग साधन भणी, सावधान थया जेह. ते मुनिवर पद वंदता, निर्मल थाये देह ॥ १॥ (बाकी सरखें) शान्तदान्त अन्तर्बहि, निर्विकार परिणाम. क्रियावंत संयम गुणे, चरण करण अभिराम ॥१॥ दयावंत षट् कायना, मैत्री पवित्रित काय; अप्रतिबंध वायु परे, करे विहार अमाय ॥२॥ ध्यान करे त्रिकरणपणे, ते देखी मुनिरायः. परम प्रमोद प्रणमीये, पूज्य तणा त्यां पाय ॥ ३ ॥ जननी पुत्र शुभ करे, तिम ए पवयण माय, चारित्र गुणगणवर्धिनी, निर्मल शिव सुखदाय ॥ ४॥ भाव अयोगी करण रुचि, मुनिवर गुप्ति वरंत; जो गुप्ते न रही शके, तो समिति विचरंत ॥५॥ गुप्ति एक संवरमयी, औत्सर्गिक परिणाम; संवर निर्मर समितिथी, अपवादे गुणधाम ॥ ६॥ द्रव्ये द्रव्य चरणता, भावे भाषचरित्र; भावदृष्टि द्रव्यक्रिया, करता शिवसंपत्त ॥ ७॥ आत्मगुण रागभावथी, जे साधक परिणाम; समिति एप्ति ते जिन कहे, आत्मसिद्धि शिवठाम ॥८॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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