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________________ ( २३० ) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ नहीं सुरि पण सूरिगणने सहाया, नमुं वाचका त्यक्त मदमोहमाया ॥ वलि द्वादशांगादि सूत्रार्थदाने, जिके सावधानानिरुद्धाभिमाने ॥१०॥ धरे पंचने वर्ग वर्गित गुणौधा, प्रवादि द्विपोछेदने तुल्यसिंघा ॥ गणी विधिशुं वात्सल्य कीजीए, तिहां श्रुतना बे भेद | " बद्धाबद्ध वखाणीया, चित्त धरो तजी खेद ॥१॥ श्रुत दुबालस अंग जे, बद्ध कहीजे तेह महानिशीथ निशीथ वळी, भेद अबद्ध लहेह ॥ २ ॥ ते श्रुत गुरु पांसे भला, विधुश्युं योग वह । उद्देश समुद्देशानुज्ञा, पूर्वक विनय क ॥ ३ ॥ कालिक उत्कालिक वळी, बहु सूत्रार्थक भेद | अंग अनंग प्रविष्ट मुख, कह्या अनेक सुभेद ॥४॥ ते सूत्रार्थ अधीत जे, बहुश्रुत ते सुविवेक । द्वादशांग दश पूर्वधर, आदिक भेद अनेक ||५|| तेहनी भक्ति करो भली, वस्त्र पात्र अन्नपान, यथा उचित दाने करी पोषे देइ मान ॥ ६ ॥ नमो उवज्झायाणं तथा, नमो चउदसपुवीणं । ए पदनो गुणणो करे, दोय सहस प्रवीण ॥ ७॥ विधि वन्दन विश्रामणा आपे बहु सन्मान | नाम कर्मोदय तीर्थकर, थाये उदय प्रधान ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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