SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नवपदजीनी पूजा ॥ ( २२५) सौख्याश्रिता ज्योतिरूपा, अनाबाध अपुनर्भवादिस्व रूपा ॥७॥ || ढाळ || उलालानी देशी ॥ सकल करममल क्षय करी, पूरण शुद्ध स्वरूपोजी || अव्याबाध प्रभुतामयी, आतम संपत्तिभूपोजी ॥३॥ [उलालो ] जेह भूप आतम सहजसंपत्ति, शक्ति व्यवितपणे करी ॥ स्वद्रव्य क्षेत्र स्वकाल भावे, गुण अनंता आदरी ॥ स्वस्वभाव गुणपर्याय परिणति, सिसाधन परभणी ॥ मुनिराज मानसहंस समवड, नमो सिद्ध महागुणी ॥४॥ ॥ पूजा ढाळ || समयपएसंतर अणफरसी, चरम तिभाग विशेष ॥ अवगाहन लही जे शिव पहोता, सिद्ध नमो ते जघन्य सिद्ध अवगाहना, अष्टांगुल एक हाथ | कूर्मा पुत्रादिक तणा, इम करी श्री जगनाथ ॥ १२॥ सिद्ध ध्यानथी जीवना, जाये दुष्कृत कोटि । जीम अमृतना बिन्दुधी, जाय तीव्र विषचोटि ॥१३॥ प्रतिबिंबित निज आत्मस्युं, सिद्ध निहाळे जेह । त्रिजग पूज्यपद संपदा, ततखिण पामे तेह ॥ ૧૫
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy