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________________ श्री नवपदजीनी पूजा ॥ (२२३) पूजा करे (आ प्रमाणे दरेक पूजा दीठ जाणवू, मात्र पदनुं नाम फेरववं. ॥ इति प्रथम श्रीअरिहंतपदपूजा समाप्ता॥ ॥ अथ द्वितीय श्री सिद्धपदपूजा प्रारंभ ॥ काव्यं ॥ सिद्धाणमाणंदरमालयाणं ॥ नमो नमोऽणंतचउकयाणं॥ करीआठकर्म क्षये पार पाम्या, जराजन्ममरणादि भय जेणे वाम्या।।निरावरण जे आत्मरूपे प्रसिद्धा,थया १ बीजी प्रतनो वधारो१ सिद्धा० समग्गकम्मक्खयकारगाणं, जम्मं जरादुक्खनिवारगाणं। २ बीजी पूजा सिद्धनी कीजे दील खुशीयाल अशुभ कर्म दूरे टळे, फले मनोरथमाळ ॥१॥ (बाकी सर) १ सकल कर्मना क्लेशथी, मूकाणा महाभाग । चिदानन्दमय शाश्वता, लागे कोइ न डाग ॥१॥ लोक अग्रक्षेत्र रह्या, लही अनन्ती ऋद्धि । भस्म कीया बाळी कर्म, परम आतमा सिद्ध ॥२॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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