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नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥
छे पाप समूह जेणे एवो छतां पण प्रदेशिराजा जे देव ऋद्धिने पामे छे ते केवल आचार्य भगवंतना चरणनोज प्रसाद जाणवो, ३
॥ श्री उपाध्यायपद माहात्म्य ॥
लहुयं पि गुरुवइडं, आराहंतेहिं वयरमज्झायं । पत्तो सुसाहुवाओ, सीसेहिं सीह गिरीगुरुणो ||४||
गुरु महाराजा फरमावेल 'वयथी' न्हाना पण वज्रस्वामिजी उपाध्याय ' वाचनाचार्य ' ने आराधन करनार आचार्य श्री सिंहगिरिजी महाराजना शिष्योए उत्तम साधुवाद ( आ उत्तम विनीत शिष्यो छे तेवी ' स्तुति) प्राप्त कयों. ४
॥ श्री साधुपद माहात्म्य ॥
साहुपयविराहणया, आराहण्या य दुकसुख्खाई । रुप्पिणी रोहिणीजीवेहिं, किं नहु पत्ताई गुरुयाई ||५|| श्री साधुपदनी विराधना तथा आराधनाथी