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नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ एएहिं नवपएहिं, रहियं अन्नं न होइ परमत्थं । एएसुच्चिय जिणसा-सणस्स सव्वस्स अवयारो ॥२॥ एएसु नवपएसु, अवअरिअं सासणस्स सव्वस्स । ता एआई पयाई. आराहह परमभत्तीए ॥३॥ जे किर सिद्धा सिझंति,जे अ,जे आवि सिज्झइस्संति। ते सवे विहु नवपय-झाणेणं चेव निभंतं ॥ ४ ॥ एयं च परमतत्तं, परमरहस्सं च परममंतं च। परमत्थं परमपयं, पन्नत्तं परमपुरिसेहिं ॥५॥ .. आ नवपदोथी रहित (शीवायर्नु) बीजु कोइ परमार्थ नथी, कारण आ नवपदोमां ज समस्त श्रीजिनशासननो (अथवा शासनना सर्वस्वनो) समावेश छे. २. (उपदेश) ___ आ नवपदोमां श्रीवीतरागशासनना सर्वस्वनो समावेश थयेलो छे ते माटे (हे भव्य जीवो!) उत्कृष्ट (बहुमानपूर्वक) भक्तिथी आ नवपदोनी आराधना करो. ३. (नवपदाराधन प्रभाव).
पूर्वकाले जेओ सिद्धिपद पाम्या, वर्तमानकाले जेओ सिद्धिपद पामे छे (महाविदेहक्षेत्रादिमां), अने भविष्यकाले जेओ सिद्धिपद पामशे तेओ सर्व पण निश्चयथी आ नवपद(वा नवपद पैकी, एकादिपद) ना ध्याने करीने ज जाणवू ४. (नवपदमाहात्म्य सार).
श्री तीर्थकर सर्वज्ञ गणधर पूर्वधर युगप्रधानादि महापुरुषोए