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________________ (१४६) नवपद विधि विगेरे संग्रह। २० मूलनामनाप्रायिश्चित्त ( फरीथी व्रतारोपण करवा स्वरूप अभ्यन्तरतप, २१ अनवस्थाप्यप्रायश्चित्त ( अमुक तप विगेरे दंड कराव्या शिवाय पुनःवतारोपण)स्वरूपअभ्यन्तरतप, २२ पारांचिक प्रायश्चित (महान् शासनप्रभावना कर्या शिवाय महाव्रत उच्चरावी गबमां लेवाय नहि) स्व रूप अभ्यन्तर तप. २३ ज्ञानविनय (ज्ञान- बहुमान भक्ति कालविनयादि ___ आचार साचववो ) स्वरूप अभ्यन्तर तप, २४ दर्शनविनय (सम्यक्त्वना लक्षणो तथा आचारो साचववा) स्व० अभ्यन्तर तप, . २५ चारित्रविनय (चारित्रनी श्रद्धाआराधना आचारो __साचववा) स्व० अभ्यन्तर तप. २६ मनोविनय ( रत्नत्रयवान जीवो उपर बहुमानादि शुभमन राखवू,) स्व० अभ्यन्तर तप, २७ वचनविनय (रत्नत्रयवान् जीवोनी वचनथी स्तुति आदि करवा ) स्व० अन्यन्तर तप,
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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