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( १३२) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ ४० , प्रकारे चतुर्विध संघवैयावच्च स्वरूप चारित्र ४१ सम्यक्प्रकारे चान्द्रादिकुल ( अनेकगच्छोनो समूह
ते कूल ) वैयावच्चस्व० चारित्र ५२ , कौटिकादिगण (अनेक कूलोनो समूह ते
, गण) वैयावच्चस्व० ४३ ,, स्त्रीपशु नपुंसकरहित वसतिमा रहेवाथी शुद्ध . ब्रह्मचर्यनी गुप्ति [वाड] स्व० चारित्र ४४ , स्त्रीओनी साथे रागवाली कथा [ आलाप
संलाप] वर्जवाथी शुद्धब्रह्मचर्यनी गुप्ति स्व०
चारित्र ४५ , स्त्रीओना आसन उपर नहि बेसवाथी [पुरु
षना आसन उपर स्त्रीए, पुरूष उठी गया पछी पण त्रण पहोर सुधी बेसवु नहि,अने स्त्रीना आसन उपर, स्त्री उठी गया पछी पण बे घडी सुधी बेसवू नहीं] शुद्धब्रह्मचर्य
नीगुप्ति स्व० चारित्र, ४६ ,, रागसहित स्त्रीओना अंगोपांग नहि जोवा