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श्री चारित्रपदाराधन अष्टमदिवसनो विधि.॥
श्री चारित्रमाहात्म्य तथा तेना गुण विचार
प्रवाहथी चाल्या आवता आठे कमोना निबीड बन्धनथी आत्माने छूटो पाडी शुद्ध स्फटिकरत्न तुल्य निर्मल कषायरहित शुद्ध आत्मस्वरूपने पमाडनार, परमानन्दमय आत्मसाम्राज्यनुं परम साधन, इन्द्रादि देवो पण जे स्वरूप माटे मनुष्य भवनी जंखणा करे छे, जेना सुखने चक्रवर्ति पण पहोंचवा समर्थ नथी जेना प्रभावी ज मनुष्यगतिनी दुर्लभता-उत्तमता वर्णवी छे, जेमां बार कषायोनो अभाव छे, आरंभ परिग्रहनो त्याग छे, अशुन क्रियाओथी निवृत्ति अने शुभ क्रियाओमा प्रवृत्ति होय छे. आवता