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આચાર્યશ્રી યશોદેવસૂરિજી લિખિત
યશોગ્રન્થમંગલ પ્રશસ્તિ સંગ્રહની
प्रस्तावना
वि. सं. 2043
४. सन् १८८७
७४
प्रधान संपादकनुं निवेदन
उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजसाहेबना ग्रंथोना प्रकाशन माटे स्थपायेली श्री यशोभारती जैन प्रकाशन समिति तरफथी जे अप्रगट ग्रंथोनुं प्रकाशन करवा निर्धार्यु हतुं ते हवे थई चूक्युं छे. आ रीते २४ ग्रंथो प्रकाशित थया छे. आजे संस्था तरफथी एक नवं प्रकाशन थई रह्युं छे. आ ग्रंथमां उपाध्यायजी महाराजना ग्रंथोना आदि तथा अंत भागो गुजराती ने हिंदी अनुवाद साथे आपवामां आव्या छे. ग्रंथोना मंगलाचरणमां इष्टदेवना स्मरण सिवाय विशेष हकीकत भाग्येज मळे छे, परंतु अंतभागना श्लोकोमा घणी वार उपाध्यायजी महाराजना जीवनवृत्तांत अने मनोभावनाने प्रकाशित करती माहिती आपणने मले छे. ए दृष्टिए आ सामग्रीनुं पोतानुं एक खास मूल्य छे.
आ सामग्री सौ प्रथम वि. सं. २०१४नी सालमां मुंबई कोटना जैन उपाश्रयमां तैयार थवा पामी हती. पछी केटलोक समय आ प्रकाशन कर के केम एनी द्विधा रही. छेवटे उपाध्यायजी महाराज प्रत्येनी मारी अनन्य लागणीए अने आ सामग्रीनी खास उपयोगिताए आ प्रकाशन कर ज जोईए एवो निर्णय करवा मने प्रेर्यो. परंतु ते पछीये मारा हाथ परनां वीजां कामोने लीधे आ सामग्रीने चकासी एनी प्रेसकोपी करवाथी मांडीने प्रूफ तपासवा सुधीनी कामगीरी माटे समय काटवानुं मारे माटे मुश्केल ज रह्यं. आ सामग्री भंडार खाते जमा पडी रहेशे के केम एवो संदेह पण ऊभो थयो. परंतु उपाध्यायजीना पुण्यप्रतापे केटलांक वरस पहेलां विद्वान प्रो. जयंतभाई कोटारीनो परिचय थयो. एमनी पासे में आ सामग्रीना प्रकाशननी मारी भावना मूकी. एमणे मारी भावनाने अनुमोदन आयुं, केमके एमने उपाध्यायजीना सर्जननो परिचय हतो अने एमना प्रत्ये एमनो श्रद्धाप्रेमनो भाव केळवायो हतो. पांचेक वरस पहेलां एमणे आ सामग्रीना प्रकाशन माटेनी