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આચાર્યશ્રી યશોદેવસૂરિજી લિખિત
વિજય યશોદેવસૂરિ યશોજજવલ गौरवगाथाना प्रस्तावना (हिन्दी)
वि. सं. २०५३
ઇ.સન્ ૧૯૯૭
संपादकीय निवेदन
एक समयकी बात है। मेरे धर्मस्नेही मित्रों बैठे थे। उन्होंने कहा कि आपका अभिनंदन AC ग्रन्थ प्रगट हो ऐसी हमारी तीव्र इच्छा है और तत्काल ये शक्य न हो तो आपके जीवन-कवन
को सार्थक, थोडीसी विगतों के साथ एक पुस्तिका भी प्रकट हो ऐसी अनिवार्य आवश्यकता 55 है। क्योंकि अब आप छोटे सर्कल के नहीं रहे लेकिन जाहिर बन गये है। आपके निमित्त MAR आपके प्रसंग मनानेकी घटना कभी खडी होती रहती है। इसमें आखिर प्रसंगोंकी वात करें तो He गुजरात के गवर्नरकी उपस्थितिमें पालीताणा की प्रजा की ओरसे सम्मान किया गया तव जो लोग NS बोलनेवाले थे वो लोगोंको आपके जीवनकी घटनाओंके विषयमें विशेष जानकारी नहीं थी। इसलिए ME वे आपके जीवन कवनकी माहिती माँगते रहे तव हमें हुआ कि अब आपके जीवनकी जानकारी A प्रजाको होनी चाहिए। इस समय ये प्रश्न खडा हुआ कि जीवनकी घटना आलेखन करनेवाला
अच्छा लेखक तैयार होना चाहिए। जो समय मिलाकर चिंतन-मनन करके तटस्थ रूपसे TE बनी हुई घटनाओं को प्रस्तुत कर सके। जो कि इस वक्त योग्य लेखक मिलनेका कार्य मुश्किल Ke था ऐसा सभी को लगा। तो फिर क्या करें? विचार विमर्स करनेके वाद यह निर्णय हुआ मा कि तत्काल योग्य लेखक मिलना कठिन है, अगर मिले तो कव लिख सके और ये कार्य पूर्ण 6 करे वे आजके संयोगोंमें मुश्किल है। आखिर तय हुआ कि दैनिक, साप्ताहिक और मासिकों
में जिस जिस घटनाओं छपी हो वे प्रसंगोंको व्यवस्थित लिखाकर उनका ही मुद्रण कर लेना र चाहिए। जिससे वनी घटनाएँ चिरंजीव रहे। आवश्यकता होने पर वक्ताओंको अच्छी तरह से
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