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________________ આચાર્યશ્રી યશોદેવસૂરિજી લિખિત ઋષિમંડલ સ્તોત્રની પ્રસ્તાવના IM. વિ. સં. ૨૦૪૨ ઇ.સત્ ૧૯૮૬ HLAR NARNA संपादकीय निवेदन वि० सं० २०१२ मे लघु एवं बृहद् दोनों प्रकार से जाने गये ६३ और ६८ गाथा के मानवाले दोनों स्तोत्रदाली क्राउन साईज की एक पुस्तिका देवनागरी संस्कृत लिपि में बड़ौदा से एक श्री मुक्तिकमल जैन मोहनमाला ने प्रगट की थी। इन दोनों स्तोत्रों का संशोधन, संख्याबंध हस्त प्रतियों, मुद्रित कृतियों, तथा उनके यंत्र " और चित्र देखने के बाद साथ ही इस विषय का चिंतन किये बाद करने में आया था। एक सौ से अधिक पाठ भेद दिये गये थे। श्रेष्ठ कागज, श्रेष्ट प्रिन्टिंग, बढीसाइज के टाइप आदि से प्रस्तुत प्रकाशन सुन्दर और आकर्षक बन गया था। तटस्थरूप से कहूँ तो आज तक जैन समाज में तो प्रकाशित हुई इस स्तोत्र की अन्य पुस्तकों में तो वह मूर्धन्य कोटि का था। इसी लिये वह अभूतपूर्व था। इस प्रकाशन का सर्वत्र खूब आदर हुआ। इसके अंत में स्तोत्र पाठ और मूलमंत्र के विषय में एक अभूतपूर्व ध्यान बहुत बारीकी से देने पर स्तोत्र प्रेमियों को नया जानने और समझने को भी मिला । मेरे पास आए हुऐ पत्र इसके साक्षी हैं। ___अभी भी इस स्तोत्र के मन्त्र (यन्त्रादि) के विषय में अनेक बातें जानने, समझने और विचारने जैसी हैं। इसके लिये मेरे पास अच्छा खासा निबंध लिखने योग्य सामग्री संग्रहित है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों समाज में अत्यंत प्रचलित इस स्तोत्र के लिये संग्रहित, संकलित सामग्री प्रसिद्धि में आए तो इस स्तोत्र के प्रेमी एवं अभ्यासी वर्ग को बहुत विचार पाथेय मिल सकेगा। इसलिये इस लघु पुस्तिका में थोडी थोडी वानगी परोसी गई है। प्रस्तुत निबंध और उसके चित्रों को प्रकाशित करने का अवसर शीघ्र प्राप्त हो इसका इन्तजार Kड कर रहा हूं।
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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