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हिन्दी में भाषान्तर करवा कर शीघ्र प्रकाशित करवाइये, फिर १० वर्ष में देखिये, ज्ञान की समृद्धि कितनी बढ़ती है और धार्मिक संस्कारों की कितनी वृद्धि होती है।
लेकिन अभी तक ऐसी किसी समृद्ध संस्था की स्थापना नहीं हुई है। इसलिये राजस्थान के श्रीसंघ और उसके आगेवानों से अनुरोध करता हूँ कि यह कार्य शीघ्र सम्पन्न करें और जैन धर्म की शान चढ़ावे । इस कार्य से अन्य अनेक लाभ भी उपलब्ध होंगे।
संवछरी विधि की यह सचित्र पुस्तक पहली बार हिन्दी में प्रकाशित हो रही है यह मेरे लिये आनन्द की बात है। हिन्दी भाषा-भाषी जनता इसका अधिकाधिक लाभ उठायेगी तो मेरे यह श्रम सार्थक होगा।
विधि प्रारम्भ करने से पूर्व जो वोधक लेख लिखा है, उसे प्रत्येक व्यक्ति पहले ध्यान पूर्वक पूरा अवश्य पढ़ ले, समजे और उसके वाद प्रतिक्रमण करेंगे तो क्रिया में श्रद्धा होगी और अपूर्व आनन्द
आएगा ।
भाषा की दृष्टि से मुद्रण में जो-जो त्रुटियाँ रह गई हों उन्हें सुज्ञ पाठक सुधार कर पढ़े । इत्यलम् ! - मुनि यशोविजय
इस पुस्तक की जन्म कथा और रहस्योद्घाटन
विगत बारह वर्ष से, प्रति वर्ष चातुर्मास का प्रारम्भ होता और संवत्सरी प्रतिक्रमण के विधिविधान की 'प्रेस कॉपी' प्रकाशित करने योग्य बनाने की इच्छा वलवती होती; किन्तु विशेष पुरुषार्थ होता नहीं था और संवत्सरी बीत जाती । अब अगले वर्ष 'जल्दी ही तैयार कर लूंगा' ऐसा मन ही मन निश्चित करता, किन्तु मेरी कार्य विवशता के कारण वर्षो बीत गये। कभी-कभी कोई पुण्यात्मा इसके लिये प्रेरणा भी करते, फिर भी कुछ परिणाम न निकला ।
वि.सं. २००७ में परमपूज्य परमोपकारी गुरुदेव आचार्य श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी महाराज साहब के साथ बम्बई गोडीजी जैन उपाश्रय मे चातुर्मास करने का प्रसंग उपस्थित हुआ; तब ( १२ वर्ष पूर्व) भिण्डी बाजार के उपान्त स्थित श्री नेमिनाथ जैन उपाश्रय में पर्युषण पर्व की आराधना करने की मुझे आज्ञा हुई कि मुनिवर श्री जयानन्द विजयजी के साथ आराधना करने गया । पर्युषण में चौदस का पक्खी प्रतिक्रमण था । उपाश्रय टसाटस चिक्कार भरा था। सामायिक ग्रहण करने के बाद प्रतिक्रमण का क्या अर्थ है ? उसे किस प्रकार करना चाहिये; विधि और भावना की शुद्धि किस तरह रखनी चाहिये और शान्ति व शिष्टाचार को कैसे सन्मान देना चाहिये ? इस सम्बन्ध में दो शब्द कहे । वम्बई निवासियों को लगा कि प्रतिक्रमण के सम्वन्ध में 'इस प्रकार की हित-शिक्षा आज तक हमें किसी ने नहीं दी, कभी हमें अपना मानकर हमारे पर भाव- दया करे अपनी बाहु में नहीं लिया' । मैंने देखा – मेरी बात उन्हें पसन्द आई है; इसलिये मैंने कहा कि आज का प्रतिक्रमण दो घण्टे तक चले, ऐसा है। यदि आप लोग आधे घण्टे का समय और अधिक देने को तैयार
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