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अनेकने प्रभावित करनार, जैन सिद्धान्तो अने तेनी परंपराना जागरूक रखेवाल, निश्चय अने व्यवहारनी तुलाना समधारक, मूर्ति अने मूर्तिपूजा प्रत्येना विरोधी आन्दोलनो, क्रियाशून्य अध्यात्मवादीओनी मान्यता अने तेना प्रचार सामे शास्त्र अने तर्क बन्ने द्वारा बुलंद सिंहनाद करनार, वीतरागदेवना सन्मार्गने सुरक्षित राखनार आ महापुरुषनी जीवन अने मौलिक विशेषताओनी नोंध, तेओश्रीना समकालीक अनेक मित्रमुनिवरो, विद्वानो होवा छतां केम कोईए न करी ? ए घटना एक प्रश्नार्थक बनी रहे छे। एम छता ओश्रीना साहित्य - कवनना ओछावत्ता अभ्यासीओए के परिचितजनोए जे कई पीरस्युं छे, ते पण ओछु मूल्यवान नथी ।
लेखकोने धन्यवाद
लेखकोए जुदा जुदा दृष्टिकोणथी, भिन्न भिन्न बनावो अने घटनाओथी, अने तेओ श्रीनी सर्वांगी साहित्य-साधनानी विशेषताओथी तेओश्रीनुं वाह्य अने आभ्यन्तर जीवनचित्र उपसाववानो अने तेओश्रीने भावभरी श्रद्धांजलि आपवानो खरेखर, (टूंकी मुदत छतां) स्तुत्य अने सुंदर प्रयत्न कर्यो छे, अने तेथी ज प्रस्तुत प्रयत्न सहु कोईना धन्यवाद मागी ले तेवो छे ।
खरेखर ! आ अंकमा प्रगट थयेली काची सामग्री भविष्यमां तेओश्रीनुं सुसंकलित, व्यवस्थावद्ध अने स्वतंत्र जीवनचरित्र आलेखवा माटेनी श्रेष्ठ भूमिका पूरी पाडशे एमां शक नथी । अंकना लेखो अंगे
सत्र - समितिए पोताना विनंतिपत्रमा खास करीने उपाध्यायजी महाराज अंगे ज लेखो लखवा आग्रह करलो, एटले प्रथम पंक्तिना घणा विद्वानोनी समृद्धि ने अभ्यस्त कलमनो लाभ लेवानुं अमारा माटे अशक्य ज हतुं । खुद उपाध्यायजी महाराज अंगे पण समिति अभ्यसनीय लेखो पूरती संख्यामां मेलवी शकी नयी । अहीं ए पण स्पष्ट करूं के मारा मित्रोनो मने एक अभ्यसनीय लेख लखवा माटेनो आग्रह छतां, सकारण लखवानुं मुलतवी राखवुं पड्युं छे ।
बीजुंए के, उपाध्यायजी महाराजना जीवन - - साहित्य अंगेनी सामग्री संघरवा पूरतो ज आ प्रयास होई. नाना मोटा, सामान्य के विशेष तमाम लेखोने स्थान आपवा उपरांत वधुमां वधु प्राप्य सामग्री आदी छे, जेथी कटलीक पूर्वप्रकाशित सामग्रीनुं पुनदर्शन पण कराव्युं छे । आनंदनी वात ए छे के, आ अंकमा जन संघना साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकारूप चारेय अंगोए भाग लीधो छे ।
लेखोमा ज्या ज्यां एक ने एक वात वेवडाती हती, नवो दृष्टिकोण के कोई विशिष्टता रजु करती न हती, तेमज तेओश्रीना जीवनने फरती जाळांद्यांखरानी जेम वाझी गएली असत् दन्तकथाओ अने वधु पडती अनुचित अने अप्रस्तुत हकीकतो हती, तेनी ज मात्र वादबाकी करी छे; ते माटे लेखको क्षमा करे !
साथे साथे ए पण स्पष्ट करूं के आ अंकना केटलाक मुद्रित लेखोमां वरसोथी चाल्या आवता केटलाक अनुचित प्रवाहो, विधानो अने हकीकतो पण जोवा मलशे, पण में जाणी जोईने ज तेनुं नास्तित्व न करतां अस्तित्व राख्युं छे, ते एटलां ज माटे के व्यवस्थित जीवनना अभावे, कालान्तरे महापुरुषोना जीवनने फरती केवी केवी हकीकतो प्रदक्षिणा करती होय छे, तेनो वर्तमान प्रजाने ख्याल आवे ।
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