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अहिंसा-.
भगवान महावीर की अहिंसा सवव्यापी अहिंसा थी। भगवान ने किसी एक वर्ग, जाति या किसी एक प्रान्त को लेकर कुछ नहीं कहा, उन्हों ने जो कुछ कहा, वह सर्व-सुखाय और सर्व-हिताय कहा । उन की वाणो में लोकत्रय का हित सन्निहित था। भगवान ने कहा-स्वयं जीओ और दूसरों को भी अपनी ही तरह जीने का अधिकार दो। उन्हों ने डंके की चोट से संसार को संदेश दिया कि दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा कि तुम स्वयं दूसरों से अपने लिए चाहते हो । यदि तुम चाहते हो कि मुझे कोई दुःख न दे, परेशान न करे, मेरे मार्ग में दीवाल बन कर कोई खड़ा न हो तो तुम्हें भी किसी को दुःख नहीं देना चाहिए, तुम्हारे द्वारा भी कोई परेशान नहीं होना चाहिए, आत्मवत सर्वभूतेषु के सत्य को सन्मुख रखकर तुम्हें भी किसी के मार्ग में दीवाल नहीं बन जाना चाहिए । तुम्हारे रोम-राम से यही ध्वनि निकलनी चाहिएसुखी रहे सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे, वैर पाप अभिमान छोड़ जग, नित्य नए मंगल गावे । घर-घर चर्चा रहे धर्म की, दृष्कृत दुष्कर हो जावें, ज्ञान चरित्र उन्नत कर अपना, मनुज जन्म फल सब पावें।।
भगवान महावीर की अहिंसा में सत्त्वेषु मैत्री, विश्वप्रेम, उदार विचार और सहिष्णुता आदि सभी गुणों का समावेश हो जाता हैं, अखण्ड मानवता की उज्ज्वल अनुभूति ही भगवान महावीर स्वामी की अहिंसा की आधार शिला है। केवल प्राणों के विनाश का नाम ही उन्हों ने हिंसा नहीं कहा, प्रत्युत परहृदयमन्दिर को