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में इस बात का अवश्य निर्देश करती । पर उन्होंने ऐसा नहीं किया, इससे यह स्वतः प्रमाणित हो जाता है कि जूआ न खेलने से कोई गधा नहीं बनता । हमारा कर्तव्य --
जैन दर्शन तथा जैनेतर दर्शन के अनुसार गधा - योनि में जाने के ये चार-चार कारण होते हैं । जैन - जैन किसी भी धर्म-शास्त्र में कहीं ऐसा नहीं लिखा है कि जुआ न खेलने से मानव गधे की योनि को प्राप्त करता है । अतः इस अन्ध विश्वास और अन्ध परम्परा का सदा के लिए जीवन से बहिष्कार कर देना चाहिए । जूना खेलना तो वैसे ही बुरा है, अनिष्टप्रद है, तब दीपमाला की पवित्र रात्रि को ऐसा कुकर्म करना जीवन की सब से बड़ी भूल है । दीपमाला की रात्रि को तो भगवान के नाम का जाप करना चाहिए। यह रात्रि कोई सामान्य रात्रि नहीं है । यह तो भगवान महावीर की निर्वाण - रात्रि है, श्री गौतम जी महाराज के केवलज्ञान की संसूचिका रात्रि है और महावीरनिर्वाण तथा गौतमीय केवलज्ञान के उपलक्ष्य में किये गए देवी और देवताओं के महोत्सव की रात्रि है । अत: इस रात्रि को अधिकाधिक मांगलिक कृत्य करने चाहिएं, अन्तर्जगत के विकारों को दूर हटाकर उसे विशुद्ध बनाना चाहिए। आत्ममन्दिर में जप, तप, त्याग - वैराग्य के दीपक जलाकर उसे जगमगाना चहिए । जीवन के भविष्य को उज्ज्वल और समुज्ज्वल बनाने का इससे बढ़कर और कोई मार्ग नहीं है।
दीपमाला और आतिशबाज़ी --
दीपमाला पर्व की आध्यात्मिकता तथा पवित्रता का दिग्दर्शन