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________________ उपसंहार 523 है। इसके सन्दर्भ में हमने थोड़ा-बहुत संकेत तृतीय अध्याय में किया है। नूतन-साहित्य-सृजन के साथ-साथ भगवान महावीर से सम्बंधित प्राचीन साहित्य को पुनः प्रकाशित भी इस वर्ष में किया गया। उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आधुनिक युग का हिन्दी जैन साहित्य अपनी विविध विधाओं में विकसित हो रहा है। उसकी भाषा शैली तथा रूप में परिवर्तन हो रहा है। भाषा युगानुरूप साहित्यिक खड़ी बोली, शब्द शक्ति सम्पन्न, मुहावरों से युक्त और यत्र-तत्र अलंकारों की छटा बिखेरती-सी दीख पड़ती है, शैली में यद्यपि वांछित नवीनता अभी तक पूर्ण रूप से नहीं आ पाई है तथापि कुछ गद्य लेखकों की रचनाओं में शैली का सजा-संवरा रूप भी हमें आकर्षित किए बिना न रहेगा। काव्य रूपों में भी परिवर्तन परिलक्षित हो रहे हैं-महाकाव्य, खण्ड काव्य तो लिखे ही गए हैं, मुक्तक भी भारी संख्या में प्राप्त हैं; किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जैन-धर्म-तत्त्वों का समावेश पर नवगीत भी लिखे गए हैं, व्यंग्य रचनाएँ भी रची जा रही हैं। नईम तथा दिनकर सोनवलकर का उल्लेख इस सम्बंध में किया जा सकता है। इस प्रकार आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य दिन-प्रतिदिन विकसित हो रहा है। यह यथार्थ है कि अभी इसमें मध्यकालीन काव्य-की सी गरिमा नहीं आ पाई है-अभी यह वैसा सम्पन्न नहीं हो पाया है और लोक रुचि को आकर्षक नहीं लग पाया है, इसका कारण 'रसराज' की उपेक्षा हो सकती है। किंतु नया सर्जक इस कमी को महसूस करेगा और वांछित रूप से रसराज का सन्निवेश कर जैन साहित्य को सम्पन्न बनाएगा-ऐसी प्रतीति करने का कारण है। विश्वास है आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य नये मानव की रचना और उसके कल्याण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा। 000
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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