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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
प्राचीन काल से जैन तत्वों से प्रभावित होकर उसकी आधार-भूमि पर कितने ही ग्रंथों का निर्माण किया गया है। इनमें कुछ दार्शनिक हैं, तो बहुत-सी रचनाएँ धार्मिक तथा साहित्यिक भी हैं। जैन दर्शन की विचारधारा दार्शनिकों की भांति साहित्यकार की मनीषा को आप्लावित करती रही है, उसकी बुद्धि को उद्बुद्ध भी करती रही है। फलस्वरूप साहित्यकार की भावना विविध स्रोतों, भिन्न-भिन्न धाराओं में फुटकर साहित्य का स्वरूप धारण करती है। इस दर्शन की सत्य, अहिंसा व प्रेम की पवित्र त्रिवेणी सर्जक के हृदय को प्रभावित कर साहित्य-सृजन में प्रेरणा देती है। फलतः इसके प्रसिद्ध तीर्थंकरों के उदात्त चरित्रों को प्रभावपूर्ण ढंग से इन तत्त्वों को संनियोजित करके साहित्यबद्ध किया गया है। प्राचीन काल से युगीन भाषा-प्रवाह में इसकी दर्शन-प्रणाली को नज़र में रखकर उत्कृष्ट साहित्य सृजन प्रारंभ हो चुका था, जो आज भी अखण्ड धारा में प्रवाहित है। मध्यकाल में भी जैन साहित्य ने न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि भाषा शास्त्र के दृष्टिकोण से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हिन्दी-साहित्य की एक अछूती दिशा को संस्पर्श कर साहित्य-भंडार की श्रीवृद्धि की है। ___ आधुनिक युग के साहित्यकारों ने भी जैन धर्म के इन्हीं प्रमुख तत्त्वों व चरित्रों को ग्रहण कर अपना विशिष्ट योगदान दिया है। आज विभिन्न विधाओं में यह साहित्य प्रकाशित होता रहा है। इस साहित्य के सर्जक चाहे जैन धर्मानुयायी हों या न हों, लेकिन उन्होंने जैन धर्म के मानवीय तत्त्वों को साहित्य के द्वारा प्रकाश में लाने का स्तुत्य कार्य अवश्य किया है। धार्मिक साहित्य होने से विचारधारा से सम्बंधित सीमाएँ तो रहेंगी ही, तथापि विशिष्ट मर्यादाओं के बावजूद भी आधुनिक साहित्यकारों ने अपनी भावनाओं का प्रशंसनीय उन्मेष विविध-साहित्य-क्षेत्र में अभिव्यक्त किया है। ___आधुनिक युग विज्ञान व मनोविज्ञान का है यह निर्विवाद है। प्रत्येक भाषा के साहित्य ने युगानुरूप स्वरूप धारण करना उपयुक्त समझा है-चाहे गद्य हो या पद्य हो। पद्य की अपेक्षा गद्य तो ठोस धरातल को ही आधार बनाकर नये-नये रूपों में अभिव्यक्त होता है। चिंतन तथा मानसिक विश्लेषण से गद्य को वास्तविक व स्वाभाविक बनाया है। हिन्दी-काव्य-साहित्य अनेकवादों से गुजरता हुआ प्रवाहित होता जा रहा है, तथैव गद्य ने भी विविध विधाओं के माध्यम से नये रूप धारण किये हैं। इस परिप्रेक्ष्य में आधुनिक जैन साहित्य के अनुशीलन के पश्चात यह बात स्पष्ट उभरती है कि भाषा क्षेत्र में तो उसने अवश्य आधुनिकता धारण कर ली है; लेकिन शैली के माध्यम पर अभी भी