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________________ 496 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य पर भी भाषा-शैली आधुनिक है। वातावरण की रचना नाटककार ने वास्तविक बनाये रखी है। भाषा की दृष्टि से सहज स्वाभाविक यह नाटक पूर्णतः रंगमंचीय है। __'दहेज के दुःखद परिणाम' पं. ज्ञानचन्द्र जैन का 16 दृश्यों में विभाजित सामाजिक नाटक है, जिसमें दहेज की कुप्रथा के कारण स्वरूप दु:खद परिणामों की ओर सुन्दर रोचक भाषा शैली व वातावरण के आयोजन द्वारा अंगुलि निर्देश किया गया है। इसकी शैली की यह विशेषता कही जायेगी कि हास्य तथा व्यंग्य के द्वारा समाज में फैली दहेज की विषम प्रथा पर आकर्षक शैली में प्रकाश डाला गया है। यह नाटक पूर्णतः रंगमंचीय है तथा जैन जी के इस नाटक के प्रदर्शन से लोगों की विचारधारा या व्यवहार में अवश्य प्रभाव-परिवर्तन आ सकता है। 'सती अंजना नाटक' पद्मराज जी गंगवाल का पौराणिक नाटक है, जिसकी भाषा-शैली आधुनिक है, लेकिन उनकी रसात्मक एवं साहित्यिक नहीं जितनी इसी विषय वस्तु को लेकर सुदर्शन जी के लिखे गये नाटक की है। फिर भी रंगमंचीयता का गुण विद्यमान है तथा कथोपकथन प्रवाहपूर्ण है। नंदलाल जैन का अहिंसा, करुणा और प्रेम का संदेश देने वाले 'अहिंसा धर्म' नाटक की भाषा शुद्ध खड़ी बोली तथा आधुनिक टेकनिक से पूर्ण है। रतनलाल गंगवाल का 'दीवान अमरचंद' ऐतिहासिक अहिंसा प्रेमी-विद्वान से सम्बंधित नाटक है। कथानक छोटा-सा होने पर भी नाटक भी रंगमंचीयता एवं रोचकता के कारण नाटक लोकप्रिय हो सकता है। बीच-बीच में गीतों का प्रयोग भी हुआ है तथा संदेश भी लम्बे-लम्बे स्वगत कथनों के द्वारा न देकर संवादों में बीच-बीच में आते रहते हैं। __ न्यामत सिंह जैन के सुपुत्र राजकुमार जैन भी कवि के अतिरिक्त हिन्दी-जैन नाटक साहित्य में सफल नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने भी जैन जगत व धर्म की प्रसिद्ध स्त्री चन्दनबाला तथा सुर सुन्दरी की कथावस्तु पर सुन्दर रोचक नाटकों की रचना की है। जैन धर्म के तेजस्वी नारी रत्नों के परिचय के साथ जैन धर्म की महत्ता प्रदर्शित करने के उद्देश्य में वे पूर्ण सफल रहे हैं तथा आधुनिक भाषा-शैली तथा शिल्प विधान का प्रयोग होने से नाटक रंगमंचीय भी बने हैं। वैसे उन्होंने न्यामतसिंह की शैली में ही उर्दू प्रधान भाषा तथा शेरों-शायरी की शैली में नाटक की रचना की है। 'अहिंसा परमोधर्म नाटक' में दयानन्द जैन 'विशारद' ने आधुनिक शैली में अहिंसा का महत्व प्रतिपादित करने वाली कथा वस्तु लेकर नाटक की रचना
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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