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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 491 के कारण अभिरुचि नहीं होती थी जो स्वाभाविक था। ऐसे निम्न कोटि के नाटकों में साधारण या गांव की जनता की रुचि के अनुरूप शेरो-शायरी, गजल, नाच-गान आदि का आधिक्य रहता था। अतः उस काल की नाटकीय विशेषताओं से प्रभावित जो नाटक जैन-साहित्य में लिखे गये, उनकी भाषा-शैली भी पद्यमय ही मिलती है, विशेषकर न्यामत सिंह के नाटकों में। आधुनिक जैन-नाटक साहित्य में सर्वप्रथम जैनेन्द्र किशोर आरावासी का नाम आदर से लिया जाता है, जिन्होंने दर्जन से भी अधिक पौराणिक विषय वस्तु पर आधारित रंगमंचीय नाटक लिखे। वे सभी अप्रकाशित होने से सामान्य पाठक तक पहुँच न पाये। आपके प्रयासों से उन नाटकों का रंगमंचीय अभिनय किया जाता था और विदूषक का पार्ट आप स्वयं खेला करते थे। उनकी मृत्यु के बाद यह मंडली बन्द हो गई थी। आपके नाटकों की भाषा-शैली प्राचीन होने पर भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम कहा जायेगा। श्री जैनेन्द्र किशोर के सभी नाटक प्रायः पद्यबद्ध हैं। उर्दू का प्रभाव पद्यों पर अत्यधिक है। 'कलि-कौतुक' के मंगलाचरण के पद्य सुन्दर हैं। + + + मनोरमा सुंदरी, अंजना-सुन्दरी, चीर द्रौपदी, प्रद्युम्न चरित और श्रीपाल चरित नाटक साधारण तथा अच्छे हैं। पौराणिक उपाख्यानों को लेखक ने अपनी कल्पना द्वारा सरस और हृदय ग्राह्य बनाने का प्रयास किया है। टेकनिक की दृष्टि से यद्यपि इन नाटकों में लेखक को पूरी सफलता नहीं मिल सकी है, तो भी इनका सम्बंध रंगमंच से है। कथा-विकास में नाटकोचित उतार-चढ़ाव विद्यमान है। वह लेखक की कलाविज्ञता का परिचायक है। इनके सभी नाटकों का आधार सांस्कृतिक चेतना है। जैन संस्कृति के प्रति लेखक की गहन आस्था है। इसलिए उसने उन्हीं मार्मिक आख्यानों को अपनाया है, जो जैन-संस्कृति की महत्ता प्रकट कर सकते हैं।' अर्जुनलाल सेठी लिखित 'महेन्द्र कुमार' नाटक की कथा वस्तु हम पीछे देख चुके हैं। यह नाटक धार्मिक या पौराणिक न होकर सामाजिक समस्याओं को चित्रित करने वाला है। इसमें नाटककार का उद्देश्य दहेज प्रथा, मद्यपान व्यसन आदि सामाजिक कुरीतियों की ओर इशारा कर समाज-सुधार स्पष्ट दीखता है। इस नाटक में पात्रों की भरमार के साथ भाषा खिचड़ी हो गई है। इस नाटक में कई भाषाओं का सम्मिश्रण है। पात्र भी कई तरह के हैं। कोई मारवाड़ी, कोई अप-टू-डेट, कोई साधारण गृहस्थ। अतः भाषा भी भिन्न प्रकार की व्यवहृत हुई है। 'कुणघणा' आदि मारवाड़ी और 'करे छे', 'उडाq छु' आदि 1. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-भाग 2, पृ. 107, 108.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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