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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य बाकी है, काफी सामग्री का उपयोग बाकी है। फिर भी जितना कार्य हो चुका है, वह भी उल्लेखनीय है।
उपलब्ध कथा-साहित्य के शिल्प विधान के विषय में प्रत्येक कृति लेकर सभी की चर्चा यहाँ संभव नहीं है, लेकिन समग्रतया संक्षेप में विवेचन उचित होगा। प्राचीन आगम ग्रन्थों में से कथा वस्तु ग्रहण करके 'बृहत कथा कोश', 'आराधना-कथा कोश', 'दो हजार वर्ष पुरानी कथाएँ' आदि अनूदित साहित्य लिखा गया है, लेकिन इनकी भाषा शैली एवं प्रस्तुतीकरण आधुनिक ही रहा है। डा. जगदीशचन्द्र जैन ने उन पुरानी कथाओं को सुन्दर स्वाभाविक भाषा-शैली से सजाकर प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने यथार्थ ही लिखा है कि-'संग्रहीत कहानियाँ बड़ी सरस है। डा. जैन ने इन कहानियों को बड़े सहज ढंग से लिखा है। इसलिए ये बहुत सहज पाठ्य हो गई हैं। इन कहानियों में कहानीपन की मात्रा इतनी अधिक है कि हजारों वर्ष से न जाने कितने कहने वालों ने इन्हें कितने ढंग से और कितनी प्रकार की भाषा में कहा है, फिर भी इनका रस बोध ज्यों का त्यों बना है। साधारणतः लोगों का विश्वास है कि जैन साहित्य बहुत नीरस है। इन कहानियों को चुनकर डा. जैन ने यह दिखा दिया है कि जैनाचार्य भी अपने गहन तत्त्व विचारों को सरस करके कहने में अपने ब्राह्मण और बौद्ध साथियों से किसी प्रकार पीछे नहीं रहे हैं। सही बात तो यह है कि जैन पंडितों ने अनेक कथा और प्रबंध की पुस्तकें बड़ी सहज भाषा में लिखी हैं।'
प्रो० राजकुमार ने भी प्राचीन ग्रंथों से अनुवाद किया है, लेकिन यह अनुवाद मूल-का-सा आनंद देता है। बृहत्-कथा-कोश का उन्होंने सरल और सुसम्बद्ध भाषा में अनुवाद किया है जिसमें मूल भावों को अक्षुण्ण रखते हुए भी रोचकता को अंशतः भी नष्ट नहीं होने दिया है।
आधुनिक हिन्दी साहित्य में हमें कहानी साहित्य जिस रूप में प्राप्त होता है, उसमें युगदर्शन एवं मानव दर्शन की सूक्ष्म से सूक्ष्मतम मानसिक चेतना को मनोविश्लेषणात्मक ढंग से प्रस्तुत करते हुए विविध लोकप्रिय नूतन शैली के रूप पाये जाते हैं। केवल छोटी-सी घटना लेकर चारित्रिक विशेषताओं का निरूपण करती हुई, कहीं एकाध-दो पात्रों की मानसिक समस्या, भावना, द्वन्द्व, आदि को व्यक्त करती हुई, कहीं प्रगतिवादी कहानियाँ तो, कहीं नये-नये
शैलीगत प्रयोग से लिप्त, अपने नये रूप-रंग-ढंग के साथ प्रकाशित हजारों की "संख्या में कहानियों का रसास्वाद या आलोचना-विवेचना कर पाते हैं। उनमें 1. डा. जगदीशचन्द्र जैन रचित-दो हजार वर्ष पुरानी कथाएँ-की भूमिका से।