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________________ सप्तम अध्याय आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान प्रस्तुत अध्याय में हमें उपलब्ध हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य के शिल्प पर विचार करना है। गद्य के अंतर्गत लगभग सभी विधाएं-कथा, नाटक, निबंध, जीवनी, संस्मरण व आत्मकथा हैं। आधुनिक युग में गद्य का प्रारंभ, महत्ता, एवं विकास का संक्षिप्त विवेचन हमने पिछले अध्याय में किया है, अतः यहाँ गद्य के लिए आवश्यक तत्त्वों के संदर्भ में संक्षिप्त विचार कर लेना समीचीन है। कविता और गद्य में मूल अन्तर यह है कि एक का वेग अत्यन्त क्षिप्र होते हुए भी छन्दोबद्ध रहता है, मर्यादित रहता है, जबकि दूसरा (गद्य) मुक्त रहकर गंभीर बना रहता है। एक में भावों की प्रधानता रहती है, तो दूसरे में विचार की प्रधानता। किन्तु जहाँ दोनों का आनुपातिक योग रहता है वहीं काम्य स्थिति बन जाती है। गद्य को कवि की कसौटी माना जाता है (गद्य कविता निकषः वदन्ति)। सुन्दर गद्य रचना करना किसी कवि की सफलता सिद्ध करता है। क्लेमेन्ट मेरी का गद्य-पद्य के शैलीगत अंतर के सम्बंध में विचार द्रष्टव्य है। 'काव्य की गति अति क्षिप्र और अधिक प्रेरणामूलक रहती है। उसमें विचार-प्रवाह छन्दों के कूलों में बंधकर अधिक सुनिश्चित और मार्मिक बन जाता है। परन्तु गद्य अनन्त महासागर की विस्तृत भूमिका लेकर चलता है, जहाँ विरोधी दिशाओं में बह जाना असंभव बात नहीं। + + + गद्य लेखन का बहुत बड़ा भाग होता, जिसमें विचार और भावना का आनुषंगिक समन्वय रहता है। कहीं विचार भावना पर हावी हो जाता है तो कहीं भावना विचार पर। आधुनिक युग में गद्य-साहित्य की प्रत्येक विधा में भावना और प्रेरणा का स्थान विचार और तर्क ने ले लिया है। परिणाम स्वरूप हम देखते हैं कि जीवन और साहित्य में बौद्धिकता का महत्व विशेष हो गया है, भावना का ह्रास होता जा रहा है। वैसे गद्य का मूल लक्ष्य बौद्धिकता के साथ ज्ञानवर्द्धन का होता है। सफल गद्य के लिए सुगठित शैली एवं संतुलित तत्त्वों की उपस्थिति अनिवार्य-सी होती है। क्योंकि गद्य-शैली को हम भाषा की 1. द्रष्टव्य-सीस्टर क्लेमेन्ट मेरी-हिन्दी साहित्य का स्वातंत्र्योत्तर विचारात्मक गद्य, पृ. 261-271.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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