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________________ - काव्य का कला-सौष्ठव आधुनिक हिन्दी - जैन 425 वर्णानुप्रास का एक सुन्दर दृष्टान्त द्रष्टव्य है स्थल-स्थल जल निर्मल अरन, कल कल करत वहंत | सहज वेरको विसर निज पशु पंछी विचरंत ।। 3-436 कोमल वर्ण ल, य, प आदि की पुनरावृत्ति से भाषा में मधुरता आ गई है। इसी प्रकार अर्थालंकार में कवि ने उपमा, उत्प्रेक्षा, अपह्नुति आदि का समुक्ति प्रयोग किया हैउपमा : मधुर वचन शीतल जिमि चंदन, परिजन मन को करती रंजन । रूपक और दृष्टान्त, मोह कोह संसार ही सारा, तृषा इव तजे जिनेश्वर प्यार । 3-92-94 दुजा ओष्ठ कर जोर अपारा, जीर्ण वसन सम तुर्त विदारा । 3-93 अपह्नुति : नंदनवन इनको कह देना, सहत कविजन कभी बने ना। यह तो यह सम है कहेना, और साभ्य इनको हि लगेना। 3-435 दृष्टान्त : इस विधि दीन दुःखी हयग्रीवा, किमि मिटहीं यह दुःख असीवा । जिमि जल सूखत दुःखित मीना, कृपन अपन धन जावत दीना ।। 2-102. एक ही दोहे में दो-तीन अलंकार प्रयुक्त करने की कवि की निपुणता - कला - का उदाहरण देखिए वदन शरद शशि सोहता, दृग विकसित जनु कंज भुज विशाल अनुपम उभय, मस्त वृषभ सम कंध ॥ 2-340 उपमा और उत्प्रेक्षा का संयोग कवि राजकुमार प्रियमित्र के सौंदर्य वर्णन में करते हैं ओष्ट प्रवाल लाल भल राजे दंत पंक्ति कलि अनार छाजे गोल कपोल कछुक न अरुणारे, कंबु कंठ शोभा अति मारे।। 2-345 रूपक- कण्टक डालि गुलाब की, भांहि द्वेष रूप कंटक हिं नाहिं । वैसे काहूं से करहीं, सब जनप्रिय भाषा उच्चरहिं ॥। 3-53. अचल कुंवर ने मुनि की वाणी सुनकर संसार सागर तैरने के लिए दीक्षा ग्रहण की धर्म घोष आचार्य की, सुन सुखद मुदृ बान। सुनत अचल दीक्षा ग्रही, भव अब्धी जलयान ।। 2-333 रूपक या अन्य अलंकारों की अपेक्षा पूरे महाकाव्य में उपमा व उत्प्रेक्षा का ही प्रयोग कवि ने अत्यधिक किया है-कवि को ये दो विशेष प्रिय दीखते हैं। 'क्षमा अजब हथियार कहाता, देत लेत जन उभय कमाता।' जैसी पंक्ति में क्षमा रूपी शस्त्र की महत्ता बताई गई है कि आदान-प्रदान करने वाले दोनों को गौरवान्वित करता है।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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