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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य अतः 'सफल जन्म' में भगवत् जी मानव-जीवन- साफल्य का सुन्दर भाषा में वर्णन करते हैं 414 दो दीन का जीवन - मेल, फिर खंडहर - सी नीरवता । यश-अपयश बस दो ही, बाकी सारा सपना है। दो पुण्य-पाप रेखाएँ, दोनों ही जग की दासी । है एक मृत्यु - सी धातक, दूसरी सुहृद माता -सी । जो ग्रहण पुण्य को करता, मणिमाला उसके पड़ती। अपनाता जो पापों को, उसके गर्दन में फांसी । + + + + + + + वह पराक्रमी मानव है, जो 'कल' को 'आज' बनाकर, क्षणभंगुर विश्व - सदन में, करता निज जन्म सफल है। भाषा की सरलता उपर्युक्त उदाहरण में स्पष्ट लक्षित है। (2) सुन्दर भावात्मक, लय प्रधान भाषा शैली के उदाहरण 'अछूता हार' तथा 'बंदी का विनोद' मुक्तक रचनाओं में ( गद्य काव्य ) जगन्नाथ मिश्र ने आशा-निराशा, वेदना, चाह आदि भावों को कोमल भाषा में व्यक्त किया है पूर्व दिशा का आकाश धनमालाओं से आच्छादित हो गया । नाविक - गण अपनी-अपनी नौका किनारे बांध गिरि-कंदराओं में छिप गये। मैं अकेला हार गूंथने में निमग्न था, पर्वत - शृंग तूफान के वेग से हिल गया। धूल से मेरी आँखें भर गईं। सारे फूल प्रबल झकोरों में पड़कर तितर-बितर हो गये। 1 मेरे पास साल ले जाने के लिए केवल अधूरा हार बचा । 'बंदी का विनोद' काव्य की कुछेक पंक्तियों की भाषा देखिए 'मेरी पिवपंची मधुर गीत गाती नहीं। उसकी झंकृति में वेदना भरी है। प्रकृति की नीरव - रंग स्थली में कभी बैठकर, तारों को छेड़ता हूँ, हृदय - पटल पर शीतल आँसू की बूँदै ढुलक पड़ती हैं। मैं तत्काल ही वीणा रख देता हूँ। 'तब' काव्य में केदारनाथ मिश्र ने हल्के रहस्यवाद के साथ ज्ञान-प्रकाश प्राप्त करने की उत्कण्ठा उसी भावानुकूल भाषा में व्यक्त की है 'भेजूंगा तब मौन निमंत्रण हे अनन्त ! तू आ जाना, मेरे उर में अपना अविनश्वर प्रकाश फैला जाना। 1. श्रीमती रमा जैन संपादित - 'आधुनिक जैन कवि' के अन्तर्गत 'अधूरा हार', पृ. 136. 2. अनेकान्त, वर्ष - 1, अंक - 3, पृ० 152.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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