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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य " भी यत्र-तत्र पाया जाता है । 'वर्धमान' महाकाव्य में संस्कृत- बहुला भाषा कवि का पांडित्य - प्रदर्शित करती है, तो 'वीरायण' की ब्रज- अवधी मिश्रित भाषा कवि का सामान्य जन-मानस तक पहुँचने का उद्देश्य प्रतिपादित करती है। भाषा में मिठास भी है तथा वर्णनों की प्रेक्षणीयता से भाषा को काफी रोचक बनाया गया है। कहीं-कहीं भाषा में गद्यात्मकता का रूप भी दिखाई पड़ता है - जैसे 'सन्ध्या प्रतिक्रमण भी करना, वैरभाव तज क्षमा उबारना ।' लेकिन इससे कहीं भावों में आघात नहीं पहुँचता | मुहावरों, सामान्य दृष्टान्तों, सूक्तियों से भी इस जैन महाकाव्य में भाषा की दमक बढ़ाई गई है, यथा - वृथा न गाल फूलाऊँ ही । 'ऐसे अनेक मुहावरे पाये जाते हैं। 'जितना ज्यादा होता बन्धी, उतना बनाता यह स्वच्छन्दी', 'पर पीड़न सम पाप नहीं है।' 'जि सद्ग्यान तय ही निरर्थक, बालू दिवाल नाहिं जिमि सार्थक। 'पारसमनि के परस, कनक तुरत जैने।' 'कान्ताकमल प्रिय सुत जाया, बिना पात्र सद्विद्या पाया । पागल, रंक, नीच, नरनाहा, बने मदोन्मत्त पूछें कहा ।।' ऐसी सूक्तियों से एक ओर जहां कवि का लोकजीवन सम्बंधी मनोवैज्ञानिक ज्ञान प्रतीत होता है, वहाँ दूसरी ओर भाषा शैली में स्वाभाविक सुंदरता आ जाती है। डा० अंबाशंकर नागर 'वीरायण' की भाषा शैली के विषय में लिखते हैं- गुजरात के वर्तमान हिन्दी सेवियों में 'वीरायण' महाकाव्य के कर्ता मूलदास का नाम उल्लेखनीय है । अवधी में रचित 'वीरायण' महाकाव्य की भाषा - शैली की सुंदरता देखिए 408 नील कंज सम सुहत शरीरा, नख- -दुति मानहु उज्जवल हीरा । भरित कपोल गोल अरुणा रे, कंठ सुललित कंबु अनुसारे ॥ पूर्ण चन्द्र आनन छवि छाये, देखत काम कोटि लजवाये । ध्वज अंकुशल धनुपद गय रेखा, नाभि- भंवर जन गंभीर देखा । रानी अनुज्ञा किंकर पाई, प्रभुदित वदन सुनाई बधाई || 'वीरायण' की भाषा का माधुर्य निम्नलिखित पंक्तियों में भी द्रष्टव्य हैविश्व विजय वीरायण महिमा, सकल सुलभ फलकी है सीमा । सूत्राधार शिरोमणी भाषा, लिखा वीर प्रभु का इतिहासा ॥ सुगमय है शैली इन केरी, कहत सुनत समुझत नहीं देरी । चौपाई चारी फल दाता, सरल सोरठा कछु सोहाता ॥ 1-12. इस आधुनिक हिन्दी जैन महाकाव्य की भाषा-शैली में माधुर्य व प्रसाद 1. वीरायण-सर्ग-1-21. 2. वीरायण - सर्ग - 3-83. 3. डा. अम्बाशंकर नागर-गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रन्थ, पृ० 14.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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