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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 371 हैं। पं० अजितकुमार शास्त्री ने खण्डनमण्डनात्मक शैली में अनेक निबंध लिखे हैं, जिनकी भाषा विषयानुकूल एवं तर्कपूर्ण है। श्री मूलचन्द्र कापड़िया भी संपादक के साथ साहित्यिक निबंधकार हैं। उन्होंने प्राचीन ग्रंथों का सुंदर संपादन करते हुए उनकी प्रस्तावनाओं में साहित्यिक चर्चा की है। श्री दरबारी लाल 'सत्यभक्त' चिन्तनशील दार्शनिक और साहित्यकार भी हैं। 'सत्यभक्त' की रचनाओं से केवल जैन साहित्य की ही नहीं, अपितु हिन्दी साहित्य की भी श्रीवृद्धि हुई है। प्रो० विमलदास, श्री पृथ्वीराज, श्री इन्द्र, श्री 'स्वतंत्र' आदि भी आचारात्मक एवं सामाजिक निबंध लिखने वाले सुलेखक हैं। __इन सबके अतिरिक्त एक उल्लेखनीय प्रतिभा संपन्न प्रसिद्ध निबंधकार के रूप में सर्वश्री जैनेन्दुकुमार जैन का नाम विशेष उल्लेखनीय है, जिनकी प्रायः सभी रचनाओं में दार्शनिक विचारधारा का पुट रहता है। हिन्दी साहित्य के उच्च कोटि के कथाकार तो आप हैं ही, श्रेष्ठ निबंधकार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। सुलझी हुई चिन्तनात्मक विचारधारा आपके निबंधों में पाई जाती है, जिसकी मूल भीत्ति जैन-दर्शन रही है। अतः आपके कई निबंध शुद्ध दार्शनिक या आचारात्मक न होते हुए भी उनके हार्द में जैन दर्शन की विचारधारा का प्रभाव लक्षित होता है। हिन्दी साहित्य को आपने एक नया मोड़, नयी शैली प्रदान की है, जिसे 'जैनेन्द्र' शैली कही जा सकती है। आचार्य नथमलमुनि आधुनिक काल के प्रखर जैन दार्शनिक एवं साहित्यकार हैं। आधुनिक भाषा शैली एवं वातावरण के साथ उन्होंने निबंध साहित्य एवं जीवन चरित की रचना की है। उनके सभी निबंधों में मौलिकता, पाठक के साथ प्रत्यक्ष सम्बंध के कारण सरसता एवं जीवंतता प्रस्फुटित होती है। जैन दर्शन पर चिन्तनात्मक तथा मीमांसात्मक अनेक बहुमूल्य ग्रन्थों का प्रणयन किया है। अनेकान्तवाद के भी आप मर्मज्ञ हैं। फुटकर निबंधों की संख्या पर्याप्त है तथा छोटे-छोटे प्रभावशाली निबंध संग्रह 'बीज और बरगद', 'समस्या का पत्थर और अध्यात्म की छेनी', 'तुम अनंत शक्ति के स्रोत हो' में हमें उनकी तक-प्रधान शैली के दर्शन होते हैं। भगवान महावीर' नामक ग्रन्थ में भगवान महावीर की जीवनी ऐतिहासिकता एवं क्रमबद्धता के साथ आत्मकथात्मक ढंग से नूतन शैली में लिखकर उच्च कोटि के साहित्यकार का परिचय दिया है। आध्यात्मिक निबंधों में उनकी शैली की रोचकता बनी रहती है। 'ज्ञान नेत्र है, और आचार चरण है। पथ को देखा तो सही, पर उस ओर चरण बढ़ते नहीं तो देखने से क्या बनेगा ? अभीप्सित लक्ष्य दूर का दूर रहेगा, दृष्टा उसे आत्मसात
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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